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(४६)
महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी कृतं.
यावत् पडिकम, नो चेवणं संभोइयं के० वली ते सांभोगिक पण, साहम्मियं के० सरखा धर्मना धणी, वज्जागमं पासेज्जा के० घणा आगमना जाण एवा न देखे तो जत्थेव अन्नसंभोइयं साहम्मियं के० ज्यहां अन्यसांभोगिक आहार पाणी एकठां न करवां ते साथे एवा सरखाधर्मी, बहुस्सुयं के० बहुश्रुत, वज्जागमं पासेज्जा के घणा आगमना जाण देखे, कप्पड़ से तस्संतिए के" तेमनी समीपे कल्पे अलाइचए वा के० आलाच जाव पडिवज्जि - तवा के यावत् प्रायश्चित ले, नो चेपणं अन्नसंभोइयं के० ते अन्य सांमेोगिक पण न T साहम्मियं के ० साधर्मिक, बहुस्सुयं के बहुश्रुत, वज्जागमं पासेज्जा के बहु आगमना
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घणी न देखे तो. जत्थेव सारुवियं के०ज्यां साधुना वेषधारी, वहुस्सुयं के बहुश्रुत, वज्जा
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गम । सेज्जा वहु आगमना घणी देखे. कप्पंति से तस्संतिए के ० तेहनी पासे कल्पे, अत्तर बा के आलोचकुं. जाव पडिवज्जितए वा के० यावत् प्रायश्चित्त पडिवजनुं, नो वेद सारुवियं के कदाचित् वेषधारी, बहुस्वयं के बहुश्रुत, बज्जागमं पासेज्जा के० बहु आगमवत न देखे तो, जत्थेव समणोवासगं के० ज्यहां श्रमणोपासक श्रावक पछवाडे चारित्र सेवी पडयाछे, साधुपणुं सूकीने श्रावक थया छे. पच्छाकडं के० तेहने पश्चात्कृत श्रमणोपासक कहीए, वहुस्सुयं के बहुश्रुत, वज्जागमं के वहुआगमना जाणने, पासेज्जा के० देखे. कप्पड़ से तस्संतिए के ० तेनी पासे कल्पे. आले इत्तए वा के० आलाच. जावपडिव जित्तए वा के० यावत् प्रायश्चित्त पडिवज्जे. नो चेव णं समणोवासंगं के० श्रमणोपासक पुर्वे कला एवा न देखे, पच्छाकडं के० पश्चात्कृत, बहुस्वयं के ० बहुश्रुत, वज्जागमं पासेज्जा के० बहु आगमना घणी न देखे तो, जत्थेव सम्मंभावियाई के० ज्यां सम्यक्भावित एटले सुविहित प्रतिष्ठित, चेइया के० जिनप्रतिमा, ॥ 'चैत्यं जिनौकस्तद्विवं' इति वचनात् ॥
वी प्रतिमा, पासेज्जा के० देखे. कप्पड़ के कल्पे, से तस्संतिए के ० तेहनीपासे, आलोइचएवा के० आलोच. जाव पडिवज्जित्तए वा के० यावत् पडिवज, नो चेव णं सम्मं भावियाई 'चेहयाई पासेज्जा के० सम्मग्भावित चैत्य पण न देखे तो, बहिया गामस्स वा के० गामने बाहेर, अथवा, जाब सन्निवेसस्स व के० यावत् सन्निवेशने बाहेर, पाहिणाभिमुद्दे वा के० पूर्व दिशिने सामा अथवा, उदिणाभिमुद्दे वा के० उत्तर संमुख रहीने इत्यादिक पाठ छे.
इत्यादिक व्यवहार प्रथमोद्देशके छे तो मुनि चैत्यनी, साखे आलोयण लीए एम कहूं. अहींयां चैत्यनो अर्थ बीजो थायज नहीं तो गृहस्य देव पूजा वैयावच्च चैत्यनुं करे तेहनुं शुं कहें ? तोपण सूर्खेनी आंखो उघडती नथी. हवे अधिकार वाले.
एम सवि श्रावक साधुने || वंदनानो अधिकारोरे ॥ सूत्रे कह्यो प्रतिमातयो || हवे कहुं पूजा विचारो ॥ शा० ॥ ११ ॥
अर्थ - एम सर्व श्रावक साधुने वंदनानो अधिकार प्रतिमानो सूत्रे को, एटले प्रतिमाने नंदनानो अधिकार, सूत्रे करीने अमे कहो . हवे पूजाना अधिकार कहूं . एडले