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________________ (३२) महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी कृत. निव्वाणमहिमं करति जेणेव गंदीसरे दीवे तेणेव उवागच्छति।" व्याख्या-तए णं सके देविदे देवराया के० तेवारे शक्र देवेंद्र देवतानो राजा, उवरिल्लं काहिगं के० जमणी उपरली, सकहं के दाढा, गिण्हइ के० ग्रह, ईशाणे देवि देवरापा के. ईशान देवेंद्र देववानो राजा, उवरिल्लं वान सकह गिम्हइ के. डावी उपरनी दाढा लोए. चमरे अनुरों से अनुरगया के० चमर असुरकुमारनो इंद्र, अमुरकुमारनो राजा, हिठिल्लं दाहिणं साई गिरहइ के जमणी हेठली दाढा लीए. वली वइरोयणिदे करोयणराया के० वली नामा वैरोचन इंद्र वैरोचनराजा, हिठिल्लं वान सकह गिण्हइ के० डावी हेठलो दाढा लोए. अवसेसा के। वीजा शेष, भवणवह नाव वेमाणियादेवा के० भवनपति यावत वैमानिकदेवता. जहारि के० जेम जेने योग्य होय ते, अवसेसाई के शेष थाकतां, अंगनंगाई .गिग्डइ के० अंगोपांग लीए. केइ जिणभत्तीए के० कोइक देवता जिननी भक्ति जाणी लीए, केइ जियमेयं तिकड के० कोइ जीत आचार छे, एम फरीने लीए, केइ धम्मो तिकडु गिण्हइ के० कोइक धर्म छ एम फरोने लीए. तए णं सके देविदे देवराया के० तेवार पछी शक देवेंद्र देवराना, भवणवा जाव वेमाणिया देवा एवं वयासी के भवनपति प्रमुख देवता एम कहे, खिपामेव भो देवाणुपिया के शोध शोघ्र हे देवानुप्रिय! सन्वरयणामए के० सर्व रत्नमयी, महइमहालए के अति मोटो, तो चेइअथूमे करेह के० श्रण चैत्यस्तूभ करो. एग भगवमो तित्थगरस्स के एक भगवान् तीर्थकरनी, एगं गणहराणं के एक गणधरनी, एगं अवसेसाणं अगगाराणं के एक शेप अणगारनी. तए णं के० तेवार पछी, वहवे जाव करेंति के० घणा भत्रनपति यावत् चार निकायना देववा धूम त्रण करे. तएणं के० ते वारे वे भवनपति प्रमुख देवता, वित्थगरस्स के तीर्थकरनो, परिनिव्वाणमहिम करंति के निर्वाण महोत्सव करे. जेणेव दोसरे दीवे के ज्यां नंदीवर द्वीप छे. तेणेव स्वागच्छति के० त्यां आवे इत्यादिक पाठ छे. इति जंबूद्वीप मज्ञप्ति पाठ इतिगाथार्य ॥१७॥ वली एज वात विशेषे कहे छे. शतक दशमे अंग पांचमे, उद्देशे छठे इंद; लालरे। दाढ तणी आशातना, टाले ते विनय अमंद, लालरे॥तु० ॥१०॥ अर्थ-शतक दशमे अंग पांचमे के० पांच अंग श्री भगवतीसूत्र-तेनुं दशसुं शतकतेने उद्देशे छठे के० छठा उद्देशाने विषे, इंद के चमरेंद्र प्रमुख इंद्र , दाढतणी आशाबना टाले के दादानो आशातनाओ टाछे छे. वे विनय अभेद के० ए वीत्र आकरो विनय जाणवो. इति गायाक्षरार्थ. भावार्थ तो एछे जे, चमरेंद्र प्रमुख सुधर्मा सभा मध्ये , विषय प्रमुख नयी सेवदा, ते सुधर्मा सभा मध्ये परमेश्वरनो दादाओछे, तेनी आशातना टालवा माटे नयी सेवता. इवि भाव ॥१८॥ इहां ए स्तवनने विषे वो दशमा शवकना छा उद्देशानी साख लखी, अने श्री भग
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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