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________________ - दोढसो गाथा सवन. दाहिणं जाणु के जमणो दींचण, धरणितलंसि साइड के धरतीने विषे थापे. तिक्खुत्तो मुद्धा धरणितलंसि निवेसइ के० प्रणवार मस्तक धरतीए थापे. थापीने, एगसाडीउत्तरासंग करेइ के एक साडो उत्तरासंग करे. करीने, जाव करयलपरिग्गहियं दसनहं के० इस्ततल परिग्रहित दश नख, सिरसा के मस्तके आवर्तन करीने, मत्थए अंजलिं कटु के० मस्तके अंजली फरीने, एवं वयासी के० एम कहे. 'नमुत्यु ण' कहे. एहनो अर्थ टीकाथी जाणत्रो. अहींयां कहेवां ग्रंथ वधी जाय छे इति. हवे ते छ वोल रायपसैणी मध्ये कया छे तथा हि-"तए णं से मूरियामे देवे समणस्स भगवओ महावोरस्स अतिए धम्म सोचा निसम्म इट्ट जाव उट्टेति उहित्वा समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ एवं वयासी, अहण्णं भंते सरियामे देवे किं भवसिद्धिए अभवसिद्धिए? १ सम्मदिष्ट्रिए मिच्छादिटिए?२परित्तसंसारीए अगंतसंसारीए१३ सुलहबोहिए दुल्लहवोहिए? ४ आराहए विराहए? ५ चरमे अचरमें? ६ मरियाभाइ समणे भगवं महावीरे धरियामं देवं एवं वयासी, मरियामा तुम णं भवसिद्धिए नो अभवसिद्धिए, जाव चरमे णो अचरमे" अस्यार्थ-तए णं से सरियाभे देवे के ते वारे ते भूरियाम देवता, समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतीए क० श्रमण भगवान् महावीरनी समीपे, धम्मं सोचा निसम्म के०धर्म सांभलोने, हटु जाव' उट्टेति क० हर्प पामीने यावत् उठे. उठीने, समणं भगवं महावीर के० श्रमण भगवान् महावीर प्रत्ये, वंदइ नमसइ केवंदना करे. नमस्कार करे, एवं वयासी क० एम कहे. अहण्णं भंते सूरिया देवे के० हे भगवन् , हु मूर्याभ नामे देवता. किं भवसिद्धिए अभवसिभिए के० गुं भव्य छु किं वा अभव्य छु ? सम्मदिही के० सम्पदृष्टि छु किं वा मिथ्यादृष्टि छ ? २ परित्तसंस.रिए अणंतसंसारिए के० परित्त संसारी छु किंवा अणत संसारी छु ? ३ मुल्ल वोहिए दुलहयोहिए के० मुलभवोधि छु एटले परभवे जिन धर्म मासि सोहली छे जेने एवो छु के दुर्लभवोधि छ ? ४ आराधक छु के विराधक छ. ५ चरमे के० देवतानो भव छेल्लो छे के अचरमे के० घणा भव करवा छे ? सूरियामाइ के० सूर्याभने वोलावीने श्रमणभगवान् महावीर सूर्याभने एम कहे. सूर्याभा, तुमणं भवसिद्धिए क. हे सूर्याभ, तु भवसिद्धिक छे, अभवसिद्धिक नको. यावत् चरम छे, अचरम नथी. एम छ बोल रुडा कहेवा. वीजा निषेध करवा. इति गाथार्थ ॥ १४ ॥ हवे सूर्यामनी भक्ति देखाडे छे. प्रभु आगल नाटक कयु, भगति सूरियाभने सार; लालरे । भगतितणां फल शुभ कह्यां, श्री उत्तराध्ययन मोझार; लालतु०॥९५ अर्थ-अभु आगल नाटक कयु. ए स्पष्ट छ, ते माटे भक्ति सरियाभने सार के मूरि वच सुरजश्चामी ।
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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