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________________ दोढसो गाथा स्तवन (३) सच्चे ॥"-ए चोथे ठाणे तथा-"दसविहे सच्चे पनते तंजहा-जणवयसम्मयठवणा, नामे रूबे पडच्चसच्चे य । ववहारभावजोए, दसमे ओवम्मसच्चे य ॥१॥" इति ठाणांग मध्ये दशमे ठाणे छे. एनो अर्थ-कोंकणदेश प्रमुखनेविषे पयने पिच कहे छे. पाणीने उदक कहे छे. इत्यादिक जनपद सत्य कहीए. १ कुमुद कुवलयादिक पण पंकथी उपजे छे पण पंकज ते अरविंदनेज सम्मत छे. ए सम्मतसत्य. २ तथा लेप्यादिकनेविषेअरिहंत प्रतिमा, एककादिक अंकविन्यास, कापणादिकनेविषे मुद्राविन्यासादिक, ते सर्व थापना सत्य. ३ तथा कुलनी वृद्धि न करतो होय तोपण कुलवर्द्धन नाम होय ते नामसत्य. ४ व्रतना गुण न होय तो लिंग माने पण व्रती कहीए ते रूपसत्य. ५ तथा अनामिकांगलि कनिष्टाने आश्रीने दीर्घ कहीए अने मध्यमाश्रीने इस्व कहीए, ए प्रतीत्य सत्य. ६ पर्वत उपर तणादिक वलतां छतां पर्वत बले छे, पाणी झमे छे तोपण कहिशुं के घडो झमे छे, अने पेट छतां पण कन्याने अनुदरा कहे छे, इत्यादिक सर्व व्यवहार सत्य छे. ७ वर्णादिक जे भाव ते भावसत्य. यथा वगलां उजलां छे. यधपि बगलांमां पांचे वर्ण छे, तोपण शुक्लवर्ण उत्कृष्ट छे माटे उजलां बगलां एम कहे छे. एमज भमरो कालो, इत्यादिक भावसत्य जाणवु. ८ तथा दंडने जोगे जे दंडी कहीए, इत्यादिक योगसत्य कहीए. ९ अने समुद्र सरखं तलाव छे. इत्यादिक उपमासत्य. १० ए दश सत्यमा स्थापना सत्य आव्यु, तथा पूर्वोक्त चार सत्यमां पण स्थापना सत्य आव्यु, ते माटे स्थापना. ते सत्य छे, एम श्री ठाणांगनी साखे देखाड. ए गाथा पनवणा सूत्रे भापा पदमां पण छे. इति द्वितीय गाथार्थ. ॥२॥ एतो सामान्य प्रकारे थापना पण साची छे, एम कयु. हवे कहे छे जे वीतराग तो चारे निक्षेपाए साचा छे. ते देखाढे छे. जास ध्यान किरियामांहि आवे, तेह सत्य करी जाणुं ॥ . श्री आवश्यक सूत्र प्रमाणे, विगते तेह वखा[रे ।। जि०॥ तु०३॥ अर्थ-जास ध्यान के० जे वीतरागर्नु ध्यान, किरियामां आवे के क्रिया जे आवश्यकनी क्रिया तेमां आवे, तेह सत्य करी जाणु के० साचु करी मानु, जे माटे आवश्यकनी करणी ते चारित्रियानी छे, माटे ते जे क्रियामां बोले ते साचुन बोले तो चारित्र रहे अन्यथा चारित्र विराधे. भापासत्य ते साचुं वोलतां थाय छे ते विचारी जोजो. हवे श्री श्रावश्यकस्त्र प्रमाणे विगते के० भिन्न भिन्न पणे, तेह के ते नामादिक सत्य वखाएं छ. इति तृतीय गाथार्थ ॥३॥ चोवीशत्थयमांहि निक्षेपा, नाम द्रव्य दोय भाई ॥ काउस्तग्ग आलावे ठवणा, नाव ते सघले लाबुरे ॥ जि०॥तु०४॥ अर्थ-चोवीशत्थय के० चोवीश जिननी स्तवना एटले लोगस्स उज्जोगरे ए पाठ उचारतां ऋपभादिक चोवीश नाम प्रगटपणे कहे छे, ते नामनिक्षेपो जाणवो. तथा द्रव्यनि वच सुरेंजश्चामी .. तस्यच ..
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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