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________________ महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी कृत. ॥ ढाल पांचमी॥ प्रभु चित्त धरीने अवधारो मुल वात-ए देशी. एम निश्चय नय सांभलीजी, बाले एक अजाण । आदरशुं अमे ज्ञाननेजी, शुं कीजे पञ्चखाण ॥ सोभागी जिन सीमंधर सुणो वात ॥ ५२ ॥ व्याख्या-एम एहवो शुद्ध निश्चय नय सांभली एक अजाण मतना अध्यात्मी वोले छे के, अमे एकला बाननेज आदरभु-अंगीकार कर, पञ्चखाण प्रमुख व्यवहार तो हेठी दशानो छे, वेहने शुं करीए ? हे सोभागी जिन श्री सीमंधरखामि ! ए वात भरवक्षेत्र लोकनी मुणो अवधारो-॥ ५२ ।। किरिया उथापी करीजी, छांडी तेणे लाज । नवि जाणे ते उपजेजी, कारण विण नवि काज॥सो० ॥शा व्याख्या-किरिया अनुष्ठानादिक रूप, तेहने उयापी नाखी ने कुमतिए लाज़ छोडी, लाजनो धर्म डयो. ते न जाणे जे कारण विना कार्य केम उपजे ? व्यवहार विना निश्रय केम आवे ? अने आन्यो पण केम ठरे ? ॥ ५३॥ निश्चय नय अवलंवताजी, नवि जाणे तस मर्म। छोडे जे व्यवहारनेज़ी, लोपे ते जिन धर्म । सो०॥ ५४॥ व्याख्या-निश्चय नये अवलंबतां के निश्चय नयनो पक्ष ग्रहेतां थकां तस के० तेहनो मर्म नयी जाणता, जे व्यवहारने छोडे छे ते जिन धर्मने लोपे छे. व्यवहार परिणति विना निश्रय आवेज नहिं. उक्तंच ओपनियुक्तौ-"निच्छयमवलंबता, णिच्छयओ णिच्छय अयाणता । णासंति चरणकरणं, बाहिरकरणालसा केई ॥१॥” इति. ॥ ५४॥ निश्चय दृष्टि हृदय धरीजी, पाले जे व्यवहार । पुण्यवंत ते पामशेजी, नवसमुद्रनो पार ॥ सो० ॥५५॥ व्याख्या-निश्चय नयनी दृष्टि हृदय धरीने एटले तद्धेतु अमृतभाव अवलंबीने जे व्यवार पाले, ते पुण्यवंत पाणी भव समुद्रनो पार पामशे. निश्चय दृष्टि व्यवहार क्रिया ते तु, निश्चय भाव पक्ष ते स्वरूप, निश्चय आत्मा शुद्ध प्रति ते निश्चय अनुबंध जाणदो.
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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