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न कहेवाय केमके रन विना ज्योति पण क्या हती ते माटे कार्य कारणपणे रहित छे. एम के० ए रीते आत्मा तथा आत्मगुण ते भिन्न नथी सहज के सहज स्वभावे अभेद छे बैक्यता छे ए वात नाणी मुणे के० जे ज्ञानी होय ते जाणे पण मूर्ख समजे नहीं ॥७॥
अंश पण नवि घटे पूरण द्रव्यना, द्रव्य पण केम कहुं द्रव्यना गुण विना । अकल ने अलख एम जीव अति तंतथी, प्रथम अंगे वंदिउं अपदने पद नथी ॥८॥
अर्थ-संपूर्ण द्रव्यना जे अंश कहेवा ते पण युक्त नथी केमके जे वारें अंश कहीयें ते वारें द्रव्य पण शा. " एग निचं निरवयवं, अक्कियं सव्वगं च सामन" इति महाभाष्य वचनात. जे द्रव्य ते सामान्य छे अने जे सामान्य ते निरवयव छे तथा द्रव्य पण केम कहुं द्रव्यना गुण विना के द्रव्य संबंधी जे गुण ते विना द्रव्य पण केम कहेवाय ? कारण के "गुणाणमासओ दवं." इत्युत्तराध्ययने २८ मे अध्ययने द्रव्य लक्षणं. तथा "गुण पर्याय बद्रव्य" इति तत्वार्थवचनात् तथा पर्याय नयवालानी युक्तियें तो द्रव्य छेज नहीं परमार्थ पर्यायज स्वतंत्र छे यथा उत्फण विफणादिक द्रव्य ना कहेवाय ते माटे द्रव्य नथी वो द्रव्यना गुण क्याथी होय जेम गाम न होय तो ते गामनी सीम क्याथी. इत्यादिवत् महा भाष्यमां जोजो एटले ए भाव जे अंश पण न कहुं अने द्रव्य पण न कहेवाय युक्तिये तो एम आव्यु अने आगममा वो अंश सहित पण द्रव्य कहियें एम छे गुण पर्यायवत् दन्यं ए वचन सुचवे छे ते माटे अकल के० कल्यो न जाय अने अलख के लख्यो न जाय ए रीतनो जीव० के० आत्मा ते अति तंतथी के० अत्यंतपणे निश्चयथकी जाणवो एटले काइ कहेवाय नहीं. यतः-"विक्खातरए सव्वे सरा नियति, तका जत्थ विज इ मई तत्थ न गहिया ओए अप्पइछाणस्स खेयने से ण दीहे ण हस्से न बट्टे न तंसे न चउरंसे न परिमंडलेन किन्हे न नीले न लोहिए न हालिद्दे न मुकिल्ले न सुरभिगंधे न दुरभिगंधे न तित्ते न कहुए न कसाए न अविले न महुरे न कक्खडे न मउए न गरुए न लहुए न सीए न उन्हे न निद्धे न लुक्खे न काओ न रूहे न संगे न इत्थी न पुरिसे न अनहा परिने सन्ने उवमा न विजए . अरूवी सचा अपयस्स पयं नत्यि" ॥ इत्यादिक आचारांग पंचमाध्ययने छठे उद्देशे का छे ते मांहेला विषम पदोनो अर्थ करिये छै— विक्खात के० मोक्ष तेने विषे रए के राता सचे सरा के० ते मोक्ष स्वरूप के छे ते कहे छे सर्व स्वर निवृत्या छे एटले कोइ शब्द वाच्य नयी तका के० विचार जे आम हशे के आम हशे ते कडेवाय नहीं मति जे औत्पातकी प्रमुख तेनो ग्रह जेने विषे नथी ते पण ओए के एकलु छे पण कर्म कलंक सहित नथी अप्पइठाणस्स के० उदारिकादिक शरीरचं प्रतिष्ठान नयी तथा खेअन्ने के० लोकालो
कर्नु ज्ञायक छे तथा न काओ के० काय नयी न रूहे के० संसारमा उगवु नथी अनहा - के नपुंसक नयी परिने के समस्त प्रकारे जाण छे सन्ने के० सम्यक् जाणे छे तथा अ