________________
(११२) शयन अवस्थानी आदि ते अविरति सम्यक्दृष्टि गुणठाणो तथा त्रीजी जागरण अवस्थानी आदि ते सुयत के० अप्रमत्त सातमो गुणठाणो ४ वहु जागरण अवस्थानी आदि ते सयोगी केवलीनामा तेरमो गुणठाणो छे तेहनी के० ते अवस्थाना आदि गुणठाणा ते प्रथम धुर गुणठाणा ए रीते जोडजो एटले ए अर्थ जे बहुशयन दशा ते १-२-३ गुणठाणे कहेवी अने शयन दशा ते ४-५-६ ए त्रण गुणठाणे कहेवी अने जागरण दशा ते७-८-९-१०-११ -१२ ए छ गुणठाणे कहेवी अने बहु जागरण ते १३-१४ ए वे गुणठाणे कहेवी ए रीते अमने मुज्यो तेवो अर्थ लख्यो वली जे बहुश्रुत होय जेणे नयचक्र ग्रंथ जोयी यथार्थ कखं स्तवनकर्चाए तो नयचक्रमां मुणी के० नयचक्रमा गुणठाणानी आदि जाणी एम कयु वे नयचक्र ग्रंथ हमणां अमारी पासे नयी माटे विचारजो ॥२॥
भाव संयोगजा कर्म उदयागता, करम नवि जीव नवि मूलते नवि छता। खडीयथी भित्तिमां जेम होए श्वेतता, भित्ति नवि खडीय नवितेह भ्रमसंगता ॥३॥ अर्थ-भावपदार्थ जे संयोग संबंधयी उपना कर्मने उदये आव्या ते भाव कर्म नथी जीव नथी मूलथी ते छतापणे नथी जेम मिचि के० भीतमाहे खडीय के० खडीथी श्वेतवा धवलता थाय छे वो ते धवलवामां भीत नथी अने खडी पण नथी अन्योन्ये भिन्न छे पण भ्रमे करी संगती जैक्यता मलति थाय छे ॥३॥ आ गाथानो अर्थ ज्ञानविमलसरिना टवा उपरथी लख्यो छे ॥३॥
देह नवि वचन नवि जीव नवि चित्तछे, कर्म नवि राग नवि द्वेष न विचित्तछे। पुद्गली भाव पुद्गलपणे परिणमें, द्रव्य नवि जूउं जूउं एक होवे किमे ॥४॥
अर्थ-देह के शरीर नथी औक्यतापणे वचन वाचिक योग नयी जीव नयी चित्त नथी कर्म नयी राग नथी द्वेष नथी विचित्त छे के० विचित्रता अनेक जाति छे ए सर्व पुगलिक भाव छे ते पुद्गलपणे परिणमे.केमके पुदलनु अनेक प्रकारे परिणमन धर्म के 'पूरणगलणधर्माणः' पुगलनु र लक्षण छे ते माटे जीवादिक जे द्रव्य छे ते सर्वथकी जूदोजूदो छे ते एक केम होय ? उपचारे एक कहियें ॥ ४ ॥ आ गाथानो अर्थ ज्ञानविमल सूरिना टवाथी लख्यो छे ॥४॥
पंथी जन लुंटतां चोरने जेम भणे, वाटे को लुटिये
तेमज मूढो गिणे । एक क्षेत्रे मल्या अणुतणी . . देखतो, विकृतिए जीवनी प्रकृति उवेखतो ॥५॥