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________________ (१९०) होय अने जो ज्ञानी होय तो सर्व लेखे छे पण ज्ञान विना एटले अनानीथका जगतने धंधे के० क्लेशमां घालता फरे एवी कप्रक्रिया करनारनां वचन लोक माने अने ते पोते तो ज्ञान विनानोछे माटे अशुद्ध प्ररुपे ते वारे लोकने पण अज्ञान उपदेश लागे माटे जगतने.कदाग्रह रूप क्लेशमा नात्युंज. इतिभाव. तो एवा अज्ञानीथकी जैनमार्ग केम चाले यत:-"मासेमासे य जो वालो, कुसग्गेणं तु झुंजए । न सो मुअक्खायधम्मस्स, कलिं अग्घड सोलसि ॥१॥" वया "अन्नाणी किं काहि" इत्यादि उत्तराध्ययन नवम अध्ययन वचनात् ।। २२ ॥ पर परिणति पोतानी माने, वरते आरत ध्याने। बंध मोक्ष कारण न पीछाने, ते पहिले गुणठाणे ॥ धन्य० २३॥ अर्थ-पर परिणति के पारकी समजण ते पोवानी करी माने एटले पर अज्ञानीनी मते चाले अथवा पर परिणति के पुद्गल शरीर वस्त्रपात्रादिकना जे परिणमन ते अज्ञाने करीने तन्मयपणे परिणमतो सर्व पोतानीज परिणति माने अथवा पर जे स्वव्यतिरिक्त लोकनां घर वेना के परिणमन के० घर व्यापारचं चितवq ते पोवार्नु करी माने अने तेथी आर्तध्याननो विकल्प करे यतः-"सयं गेहं परिचन्ज, परगेहंसि वावडे ।" इत्युत्तराध्ययन वचनात्. माटे पोतानुं पर मुकी परघरनी चिता करे तो पापश्रमण कयोछे इतिभावः। अने बंध मोल कारण के बंधनां कारण जे मिथ्याल अविरति कपाय योग प्रमाद प्रमुख जे बंधना हेतु ते न पीछाने के० न जाणे मोक्षनां कारण जे कपायादिकनो अभाव अथवा ज्ञानक्रिया प्रमुख एटले 'नाणकिरिया मुक्खो' इति वचनात् ।। इत्यादिक मोक्षना हेतु छे ते पण न पीछाने के० न जाणे एवा अज्ञानी पाणी ते गमे तेटला कष्टादिक करे वोपण अज्ञानी छे माटे पहेले गुणठाणे जाणवा. यदुक्तं " नाणेण विणा चरणं, पढमगुणहाणपुहिकरं ।" इत्युपदेशमालावृत्तौ ॥ २३ ॥ किरिया लव पण जे ज्ञानीनो, दृष्टि थिरादिक लागे। तेथी सुजश लहिजें साहिब, सीमंधर तुझ रागे ॥ धन्य० २४ ॥ अर्थ-ते मारे ज्ञानीनो के ज्ञानवंतनो क्रियानो लव के एक अंशमात्र पण जे पांचमी थिरानामा दृष्टि तिहां लागतो होय एटले सम्यक्त सहित होय आदि शब्दयी कांता प्रभा परा ए प्रण दृष्टि लड़ये तेथी के० ते ज्ञानसहित क्रियाना अंशथी हे साहेव मुजश लहिजे के० भलो जश पामियें मोक्षरूप उत्कृष्टो जश पामिये पण ते हे श्रीमंधर परमात्मा तुझ रागे के तारे स्नेहे करीने पामियें ॥ २४ ॥
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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