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________________ ( ७० ) अर्थ - वली अर्थ के ० टीका प्रमुख विना केम पामियें सकल के० समस्त अनिबद्ध के० अणीबंद्ध ते घुरथी ते छेडा लगें सर्व वात केम जडे सूत्रमां तो लगारेक नाम मात्र कहे संपूर्ण तो टीका प्रमुखमा लाभे अथवा अनिवद्ध के० सूत्रमां नयी बंधाणा एवा भाव तो घणा रह्या छे, अत्यंत थावरमांथी आवी जेम मरुदेवाजी मोक्षे गयां इत्यादिक वगर बांध्या पांचसो आदेश छे ते सर्व केवल सूत्रेंज केवी रीते गम्यमान थाय ते माटे गुरु आदिकना सुखी वाणी सांभलीयें जे संप्रदायिक होय ते धारतां थकां होवे, सर्व सुबद्ध के सर्व सुवद्ध थाय सुयुक्तिवंत थाय ॥ १७ ॥ ७ पुस्तक अर्थ परंपरा, सघली जेहने हाथ; जि० । सुविहित अणमानता, केम रहेसे निज आथ ॥ जि० तुझ० १८ ॥ अर्थ-पुस्तक जे अंगोपांगादिक अक्षर न्यासरूप अर्थ टीका प्रमुख जे गुरु संप्रदायनी परंपरा ते सर्व जेने हाथे के श्वा जे सुविहित शुद्ध मार्गना प्ररुपनार तेहने अणमानतां एटले अंगीकार करचा विना केम रहेशे ? निज आथ के० पोतानी समक्रितरूप जे लक्ष्मी ते शी रीते रहेशे ॥ १८ ॥ सदगुरु पासे शिखतां, अर्थ न मांहे विरोधः जि० । हेतु वाद आगमत्रतें, जाणे जेह सुवोध || जि० तुझ० १९ ॥ अर्थ-ते माटे स्वच्छंदपणुं टालीने सद्गुरु पासे विनयादिकें करीने सूत्रना अर्थ जे टीका मुख ते धारवा तेमां कांइ विरोध नथी पण ते मूर्खलोक एम जाणे छे जे सूत्रमां विरोध नथी अने अर्थमा विरोध छे ते खोडुं छे. गुरुमुखे शीखतां थकां कांइ विरोध छेन नहीं तथा ए रीते गुरु पार्से धारतां हेतुवाद कहेतां कारण निमित्तवाद एहवो आगम जे सिद्धांत तेने जाणे जे थकी सुवोध के० भलो वोध थाय ॥ १९ ॥ अर्थं मत भेदादिके, जेह विरोध गणंत; जि० । ते सूत्रे पण देखशे, जो होशे एकंत ॥ जि० तुझ० २० ॥ अर्थ - वली अर्थ के ० टीका प्रमुखने विषे मतभेदादिकें के० कोइ मतभेदें कोइ वाचनांतर भेदे भेदपशुं देखीने जे विरोध गणे छे अने कहे छे जे टीका प्रमुख विरोधी छे मलती नयी तो केम मानीयें तेहने कहे छे के जे प्राणी टीका प्रमुखमां विरोघपणुं जोशे ते सूत्रमां पण विरोधपणुं देखशे जो एकांते निश्चये करी जोशे तो सूत्रमां पण घणो विरोध छे ते केम नयी जोता. इति भावः ॥ २० ॥ संहरता जाणे नहीं, वीर कहे एम कल्प; जि० । संहरता पण नाणनो, प्रथम अंग छे जल्प | जि० तुझ० २१ ॥ 1
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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