SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६६) अर्थमा नियुक्ति तथा त्रीजा अर्यमा भाप्य आव्यु एम हे जगदीश तुं भाप के भगवतीना शतक २५ माना त्रीजा उद्देशामा कई छ-" मृत्यों खलु पढमा, बीओ निजुत्तिमिसओ भणिय । तइयो य निरविससी, एसविहि होड अणुओगी ॥१॥" ए गाथा नंदिमृत्र मध्यं पण छे ने माटे अर्थ प्रयाण करे तो खम थाय ।। ७ ॥ छाया नर चालें चले, रहे थिति तस जेम; जि० । सूत्र अरथ चाले चले, रहे थिति तस तम ॥ जि. तुझ०८॥ अर्थ-जम नर के० पुरुपनी छाया त जे वारें पुरुप चाले ते वार नेनो छांयडा पण चालं अने रहे के० पुरुप उभो रहे ने वारे तस के० ते छायानी पण स्थिति के० रहेg थाय जम ए तेम मृत्र अने अर्थमां पण एमज भाववं. मृत्रनी चाल अर्थ चले चाले रहे के० मृत्र रहे ते वारे तस के० ते अर्थनु पण थिति के० रहे थाय ॥ ८ ॥ अर्थ कह विधि वारणा, उभय सूत्र जेम ठाण; जि० तम प्रमाण सामान्यथी, नवि प्रमाण अप्रमाण ॥ जि. तुझ० ९॥ अर्थ-बली अर्थ के टीका प्रमुख होय तेज समजावे अने विधि के० विविवाढ तथा वारणा के निषेध मृत्र तथा उभय मृत्र के विधिमूत्र तथा निपंधमत्र ए बहु मूत्र जम ठाण के. ठाणांगमूत्र मध्ये कयां छे. यथा-"नो कप्पड निग्गंयाण वा निग्गंधीण वा इमाओउडि हायोगणियायाजिताओ पंच महण्णवायो महानईओ, अंतोमासस्स दुखुचो वा तिग्युत्तो वा उत्तरिए संत्तरित्तए वा, तंजहा गंगा जउणा सरऊ एरावती मही" इति ए रीत निषेध करीने बली लगनाज भूत्रमा आनाकरी. यथा-"पंचहि ठाणेहि कप्पति तंजहा भयसि वा दुन्मिकबसि वा पन्चाईज चणकोई उनगंसि वा एज्जमाणसि महता वा अणारिएहिं।" इति एवं मृत्र कयां एक विधि, एक निषेध ए बेमां कयुं मत्र प्रमाण करिये अनेकयुं मंत्र अप्रमाण करिये इहां एक अप्रमाण न थाय इतिभावः हवे पछवाडाना वेपदनों अर्थ कहछ तम के. गैन नंम ठाणांग मध्ये बहु मृत्र देखाड्या नेम सामान्य प्रमाण जे मूत्र छे ते मूत्रथी नत्रि प्रमाण अप्रमाण के० इहां सामान्य पद छे ते माटे जाणीये छैये ज विशेप पढ़ वाहाग्यी लावीय तबार एम अर्य थाय जे विशेप प्रमाण ते टीका प्रमुख ते नवि अप्रमाण क. अप्रमाण नथी पटले ए भाव जे प्रमाण वे प्रकारना एक सामान्य प्रमाण वीजु विशेप - माण तमां सामान्य प्रमाण ते मूत्र कहीये जमां सामान्यपणे मृचना मात्रै कयु होय अने विशेप प्रमाण ने अर्थ टीका प्रमुखने कहींय जमां विस्तारीने कयु छ ए वे प्रमाण छे तेमां सामान्य प्रमाण खरं अने विशेप प्रमाण खोटुं एम न कहवाय, सामान्य प्रमाणधी विशेष ममाण ते अप्रमाण कम थाय. इतिभावः ॥९॥ अंध पंगु जेम व मले, चाले इच्छित ठाण; जि० । सूत्र अरथ तेम जाणीय, कल्प भाप्यनी वाण || जि. तुझ० १०॥
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy