SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५६) मां कही जे त्रिविधे अहिंसा के० त्रण प्रकारनी अंहिंसा ते देखाडे छे-१ हेतु अहिंसा २ स्वरूप अहिंसा ३ अनुबंध अहिंसा ए विवरीने देखाडे हे ॥ ७ ॥ हेतु अहिंसा जयणारूपें, जंतु अघात खरूप । फलरूपे जें तेह परिणामे, ते अनुबंध स्वरूप || मन० ८ ॥ अर्थ - तेमां पहेलो हेतु अहिंसा ते यतना करो केमके जे जीवयतना करवी ते अहिंसा नो हेतु छे माटे हेतु अहिंसा कहीयें, बीजी जे जंतु अघात के० जीवने मारवो नहीं प्राणवियोग न करबो तेहनुं नाम स्वरूप अहिंसा कहीयें, त्रीजी स्वर्गापवर्गादिक फलरूपे जे अहिंसा परिणमे ते अनुबंध अहिंसालुं स्वरूप जाणवु ॥ ८ ॥ हेतु स्वरूप अहिंसा आपे, शुभ फल विणं अनुबंध | दृढ अज्ञान थकी ते आपे, हिंसानो अनुबंध || मन० ९ ॥ अर्थ- हवे त्रणे अहिंसानां फल कहे छे. जे हेतु अहिंसा तथा स्वरूप अहिंसा ए वे अहिंसा ते शुभ फल के० पुण्यफल आपे विण अनुबंध के अनुबंध विना एटले हेतु तथा स्वरूप आ हेतुथी पुण्य वंधाय ते देवता प्रमुखनो भव पामे पण आगलें संलग्न पुण्य परंपरा. न चाले माटे पापानुबंधी पुण्य बंधाय जेम अहिंसाना त्रण भेद तेम हिंसाना पण त्रण भेद के ते कहे छे–१ हेतुहिंसा २ स्वरूपहिसा ३ अनुबंधहिंसा ए त्रणमां हिंसानुं अनुबंध के० फल ते पण जे हिंसालुंज आपे तेनो हेतु कहे छे के दृढ अज्ञानथकी के० आकरे अज्ञाने करीने एटले ए भाव जे हेतुथी जोइयें तो अहिंसा तथा स्वरूपथी जोइये तोपण अहिंसा अने अनुaa जोये तो हिंसा के तो ते हिंसाथी पण संसार वधे अने अज्ञान अहिंसाथी पण संसार घे ते माटे मां अनुबंध अहिंसा होय ते आदरवी इतिभावः ॥ ९ ॥ निन्हव प्रमुखतणी जेम किरिया, जेह अहिंसारूप । सुरदुरगति देइ ते पाडे, दुत्तर भवजल कूप ॥ मन० १० ॥ अर्थ — जेम जमाली प्रमुख निन्हत्र सर्वजैनलिंगे हता तथा क्रिया पण जैननी करता हता ते श्रीभगवतीमां जमालीतुं महासंयम वखायुं. पण जे अहिंसारूप के० ते क्रिया सर्व हेतुअहिंसा तथा स्वरूप अहिंसारूप हती पण ते सुरगतिदेइ के० देवतानी दुर्गति एटले किल्बिपिया प्रमुख देवतानी दुर्गति आपीने पछी पाडे के० नाखे दुत्तर भवजल कूप के० दुर्खे तराय एव संसाररूप जलनो कूबो तेमां नांखे इति ॥ १० ॥ दुर्व्वल नग्न मास उपवासी, जो छे माया रंग । तोपण गरभ अनंता लेशे, बोले बीजुं अंग ॥ मन० ११ ॥
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy