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________________ ( १९ ) न जाणे गत शिष्य अवमे, थिविर बलहीणो । सुगुण परिचित संयतिकृत, पिंडविधि लोणो ॥ देव० ॥ ११ ॥ अर्थ- हवे जे एम कहे छे तेहने ठपको देतां सहने उपदेश दे छे के जे अर्णिकापुत्रो दृष्टांत आपे छे ते न जाणे के० नयी जाणता जे ते अरणिकापुत्र आर्यानो आण्यो आहार लेता पण केवा हता जे गतशिष्य के० शिष्यनो समुदाय पासे नहतो वली अमे के० दुकाल हतो एटले ए भाव जे दुकाल जाणी शिष्यने विहार कराव्यो हतो वली पोतानी पण थिविर के० वृद्धावस्था हती तथा वलहीणो के० शक्तिहीण हता, गोचरीयें फरवाने असमर्थ हता तथा आर्या जे पुष्पचूला नामे साध्वी ते पग भला गुणनी परिचयवानहती ते संयति के० साध्वी तेणे कृत के० करचो एटले आण्यो एवो जे पिंड के० आहार ते वली विधि के० विधि सहित लीणो के० लीधो छे, ते कारण तो कोइ गणता नथी अने केवल आर्या लाभ गवेषे छे. यतः- “अन्नियपुत्तायरिओ, भत्तं पाणं च पुप्फचूलाए । उवणीयं भुंजतो, तेणेव भवेण अंतगडो || १ || गयसीसगणं ओमे, भिक्खायरिया अपञ्चले थेरं नगणंति सावि सढा अज्जियलाभं गवेसंतो ||२||” तो सहावि के० सखाइ शिष्यादिक छतां पण शठ मूर्ख एम कहे छे इतिभाव ॥ ११ ॥ विगय लेवी नित्य सूजे, लष्ट पुष्ट भणे 1 अन्यथा किम दोष पहनो, उदायन न गणे ॥ देव० ॥ १२ ॥ अर्थ- हवे केइक एम कहे छे जे विगय वावरवी निरंतर कल्पे एम पोते लष्ट पुष्ट थका भणे के० कहे छे, एटले निरंतर विगय वावरतां दोष नथी एवं बोलनारने कोइक रूडा साधु ठपको आपे के भाई विगय तो साधुने निरंतर लेवी कल्पे नहीं. यतः- “विगई विगई भोओ, विगइगयं जो उ भुंजए साहू | विगई विगइसहावा, विगई विगई बला नेइ ॥ १ ॥” इति वचनात् । एम कहे तेने पाछो आवी रीते उत्तर आपे जे अन्यथा के० जो विगय वावरतां - दोष होय तो ते उदायन राजऋपियें केम गण्यो नहीं एटले ए भाव जे विगय लेतां दोष होय तो उदायन ऋषियें केम वावरी हती. यतः- “भत्तं वा पाणं वा, भुत्तूर्ण लावलवियमविसुद्धं । तो वज्जए पडिछन्नं, उदायणरिसिं च चइति ॥ १ ॥" इत्यावश्यके ॥ १२ ॥ उदायन राजर्षि तनु नवि, सीत लुक्ष सहे । तेह व्रजमां विगय सेवे, शुं ते न लहे ॥ देव० ॥ १३ ॥ अर्थ- हवे उत्तर कहे छे जे उदायन राजऋषिना तनु के० शरीरने विषे शीत के० टाई अने लक्ष के० लुखुं ते नवि के० नथी सहेवातुं एटले राजवी थकां दीक्षा लीघी के अने रोगीष्ट शरीर छे ते माटे सहन नथी थातुं इविभाव. माटे उदायनरुषिये व्रजमां के० श्रीगोकुलमां विगय बावरी छे एहनुं विगय वावरवानुं कारण ते मूढ न लहे के० शुं नयी
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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