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________________ (१६) अर्थ-माटे दुष्ट के० दूषणसहित जे अपवाद साधन होय ते ले कोइ चित्तमां घरं ते तो भग्नपरिणामी के० संयन क्रियायी भाग्या के परिणाम जेहना एहवा जे लिंगी हो तने आवश्यक विषे भाप्या के० क्या छे. केवा कथा के ? के मुनिनामी के मुनि नामना घणी एटले जे सुनीवर होय से सेवा लिगीने त्यजे के० छांडे ॥ २ ॥ नियतवास विहार चेईय, भक्तिनो धंधो ॥ - मूढ अज्जालाभ थापे. विगय पडिवंधो || देव० ३ ॥ अर्थ-वे दुष्ट आलंबन देखाडवा मांडे द्वार बांबे ने एक नियतवास विहार के० नित्यवासे विचर एटले नित्यवास कल्प इतिभाव. एक स्थानके रहे एम कोइक स्थाप है. बीजी चेsय भक्तिनो धंघों एटले चैत्य जे देने तथा जिनप्रतिमा तेनी भक्तिनो वंधी जे कार्य व्यग्रता ते साधुने करबो एडले जिनपूजादिक करवी. इतिभाव, वटी श्रीजी मूढ के० मूर्ख ते अजालाम थापे के० आयांना लाभ थापे के एटले साध्वी बोहोरी लावे ते साधुने पे एम थापे छे: चांथो विगय जे दूध दही प्रमुख अने कडाविगयने त्रिषे पडिबंधों के प्रतिबंध एटले विना लोपी ने एम कहे ले के विगय खातां दोप नयी. यत:- "नीआवासविहारं. चेड्यभत्तिच अज्ञोपालाभं । विगईनुअ पडिवद्धं निहोस चांडया वित्ति ॥ शा" ॥३॥ कहे उग्र विहार भागा, संगमआयरिओ | नियतवास भजे वहु श्रुत, सुणिओ गुणदरिओ ॥ देव० ४ ॥ अर्थ- हवे उग्रविहाररूप द्वार छांते की देखा है. से कोर्डक एम कहे के के उग्रविहारी वाक्यां संगमआयरियो के संगमाचार्य नियतवासभजे के० नित्यवासीपणुभज्युं छे. ने संगमाचार्य बहुश्रुत के ज्ञानी पुरुष हता एवं अमे क्षुणियों के० आगममाई सांभल्युं के एटले गुणसमुद्र तथा बहुश्रुत एवा संगमाचार्ये नित्यवास कबुल करयां तेथी अमे पण जाणीय छैये से एक ठाम रहेतां दोष देखाना नयी एम कहींने नित्यवास यापे हे. यन:-"संगमये॒रायरिओं । मुतबस्सी तìव गीयन्यो । पेहिता गुणदोमं । नियावासं पत्रन्नोऊ || १ ||” इतिबंदनकनिर्युक्तौ ॥ ४ ॥ न जाणे तं खण जंघा, वल थोविर तहो । गोचरीना भाग कल्पी, बहु रह्यो जेहा ॥ देव० ५ ॥ अर्थ--ए गर्ने जे कहे थे तेने उत्तर करें ले के जे एम कहे ते पुरुष न जाणे के नयी जाणना एकले नयो गणता जे वीण के आएं युं हनु जंघावल के० जंबातुं बल पटले हिंडवानी शक्ति ही नहीं, वही थिविर के० वडपण हनुं वा तेहीं के ते संगमाचार्य हना तथा उन्णी दुर्भिक्ष बनो. विप्यने विहार कराव्यो हतो. बळी ते अप्रतिबंत्रपणे रह्या ने पण गौचरीना भाग गाममां कल्पीने रहा हना, एटले एक बरे आहार न लेता हना.
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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