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________________ ११०२) महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी कृत. वाही ओछां एक कोडाकोडी सागरोपमे वीर मोक्षे गया ग केम ? ४६. मूयगडांग सूत्रमा कयु जे आधाकर्मी आहार करतो कर्मे छेपाय पण खरो, तथा न पण पाय. एएफ गाथामां वे वात. ए केम ? ४७ वली एडज भूत्रे कर्मे न लेपाय कई; अने भगवतीमांगतक पहेले उद्देशे नवये आधाकर्मी आहार करतो सात कर्म यांचे. शिथिल होय तो गाढ करे. इत्यादि ए केम? ४८ समवायांगे तेतरीश हजार योजन कांइक अणुं चक्षुस्पर्श मूर्य आवे एम कार्दा अने जंयुद्वीपपन्नतीमां वतरीश हजार एक योजन झाझरो च स्पर्श सूर्य आवे. एकम४९ समवायांगे मेरुनी तलेटी दशहजार योजन पहोली छे एम कय छ, अने जबुद्वीपपन्नतीमा दश हजार नेत्रु माझेरी कही छे. ए केम? ५० भगवती मृत्रना शतक आठमे उद्देशे दशमे जीवने शुद्गल कहीए तथा शुद्गली कहीए. एम कडा छ ए केम? ५. समवायांगे मेरुनां सोल नाम कायां छे, तेमा आठ, प्रियदर्शन फयु छे तथा चौदमुं उत्तर का छे, अने जंबुद्दीपपन्नतीमां सोल नाम छे तेमां आठमुं शिलोचन का छे अने चौदसु उत्तम का छे. ए केम ? ५२ पनवणामांओगणीशमै पदे छाम्धने अणाहारी उक्त समय कहा छे, ने भगवतीमा उत्कृष्टा अणाहारीनावण समय कया छे. ए केम? ५३ एमज जीवाभिगमे वे समय,भगवतीए समय त्रण. ए केम ? ५४ समवायांगे श्रमण भगवान महावीरने बेतालीश वरस झाझरो साधुपर्याय कहो, अने पर्युपणाकल्पमा वेतालीश पूरी कयां. ए केम? ५५ जीवाभिगमे रुचकद्वीपथी असंख्यातु मान का अने जीवाभिगमने लेखे ठाण वमणां गणतां एक निखर्व चार अवज पंचाशी करोड छोतेर लाख मान आवे. वली त्रिमत्ययावतार गणे तो रुचकद्वीपर्नु मान ११००८२२३४७७७६००००० थाय; अने भगवती सूत्रमा शतक छठे उद्देशे सातमे तथा अनुयोगद्वारे एकसो चोराणु आंक ल. गे तो संख्यातु गण्युं, बली पालाने माने संख्यातु तो वेगलं रा; पछी असंख्यातु आवे तो रुचकद्वीप असंख्यातो केम थयो ? ५६ समवायांगे आडतरीशमे समवाए मेरुनो बीजो कांड आहतरीश हजार योजन उंचो को तथा सोलमे समवाये प्रथम कांड एकसठ हजार योजननो उंचो कह्यो; जंबुद्वीपपन्नतीमा हेठलो कांड एकहजार योजननो बाहुल्ये कछो छे मध्य कांड प्रेसठहजार योजननो वाहुल्य कह्यो, उपरलो कांड छत्रीसहजार जोजननो वाहुल्य कलो, एम सर्व पूर्व अपरे थइ एक लाख योजन वाहुल्य छे. ए लाख योजन बाहुल्यपणे जंबुद्वीपपत्रविमा कह्यो तेवारे वीजां नदीओ, पर्वत, अने सात क्षेत्र ए सर्व केम मायां ५७ तथा कहेशो के वाहुल्य ते उंचपणुं हशे तो पूर्व अपरनो शो अर्थी तथा उंचपj कहेता पण समवायांगे नवाणु हजार योजन वे भागे वहेच्यो तेहमां प्रथम एकशठ हजार अने वीजो आडत्रीस हजारनो करो. जंबुद्वीपपन्नवीमा कांदा सहित त्रणे भागे वहेच्यो; तेमां प्रथम एकहजारनो, बीजो प्रेसठहजारनो अने श्रीजो छत्रीशहजारनो. ए सर्व केम ? ५८ समवायांगे नंदनवन विष्कंभ नवहजार नवसे योजन कयं, अने जैबुद्वीप नतीमां नवहजार नवसे चोपन योजन झाझं कg.ए केम? ५९ प्रश्नयाकरणे तया समवायांगे भवनपति वीश, चंद्र सूर्य बे, अने सोधर्मादिक दश एव वत्रीश इंद्र कह्या, अने जबुद्वीपपन्नतीमा
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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