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(९०) महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी कृत. पति सुमिणभावणा नाम उछिसित्तए, पण्णरसवास कप्पति चारणभावणा नाम अज्अयणे उदिसित्तए, सोलसवास कप्पति वेयणीसयं नाम अज्अयणं उदिसित्तए, सत्तरसवास कप्पति आसीविसनामं अज्अयणे उदिसित्तए, अहारसवास कप्पति दिडिविसमावणा नाम अज्अयणे उदिसित्तए, एगुणवीसइवासपरियागस्स कप्पति दिठिवाए नाम अंगे उहिसित्तए, वीसवासपरियाए समणे निग्गंथे सव्वसुआणवाई भवति ॥" अस्यार्थ-एनो अर्थ सुगम छे तो पण संक्षेप लख छे. त्रण वरसना पर्यायना धणी साधुने कल्पे आचारप्रकल्प नामा अध्ययन भणवाने, चार वरसनी दीक्षावालाने भूयगडांगसूत्र भण कल्पे. एम पांच वरसनाने दशाकल्प, व्यवहार अध्ययन भण, कल्पे. आठ बरसना पर्यायवाला ठाणांग समवायांग भणे, दश वरसना पर्यायवाला भगवती सूत्र भणे. अगीआर वरसना पर्यायवाला खुहियाविमानमविभक्ति महल्लियाविमानप्रविभक्ति अंगचूलिया, वगचूलिआ अने विवाह चलिया भणे; चार वरसना पर्यायवाला अरुणोपपात, वरुणोपपात, गरुडोपपात, धरणोपपात, वैश्रमणोपपात अने बैलंधरोपपात भणे. तेर वरसना पर्यायवाला उपस्थानश्रुत, समुहाणश्रुत, देवेंद्रोपपात अने नागपरियावलिया अध्ययन भणे. चउदवरसना पर्यायवाला स्वमभावना अध्ययन भणे. पनर वरसना पर्यायवाला चारणभावना अध्ययन भणे. सोल वरसना पर्यायवाला वेदनी शतक अध्ययन भणे. सत्तर वरसना पर्यायवाला आसी विस अध्ययन भणे. अढार वरसना पर्यायवाला दृष्टिविपभावना नामा अध्ययन भणे.
ओगणीस बरसना पर्यायवाला दृष्टिवादनामा अध्ययन भणे. वीश वरसना पर्यायवाला सर्व सूत्रना वादी होय. इति व्यवहारदशमोद्देशके. जो साधु एटला वरस पछी भणे तो श्रावक तो सर्वथा न भणे. इति भाव । तेवारे ढुंढक वोल्यो जे, जो एम छे तो श्री दशवैकालिक मध्ये केम कयु जे 'पढमं नाणं तओ दया' के प्रथम ज्ञान ने पछी दया. ज्ञान विना दया कम पाले ? माटे श्रावक ए लेखे सूत्र भणे ते उपर उत्तर वाले छे. प्रथम ज्ञान ने पछी दया कही छे ते कोने कही छे? ते उपर आगलं पद कयु छे. तिहां संजत गुण रेह के० तिहां संजत कया छे. गुणनी रेखा सरखा मुनि एवा होय, यतः-"पढमं नाणं तो दया एवं चिठ्इ सन्च संजए ॥" एम दशवकालिकनो पाठ छे माटे श्रावकने केम जोडो छो! पण सब सावए एवं नथी कड्यु तो एह वचनथी शो संदेह उपजे छे ! इत्यष्टमी गाथार्थ ॥८॥
नवमे अध्ययने रे वीजा अंगमां । घरमां दीव न दी? ॥ वलिय चउदमेरे कडं शिक्षा लहे । ग्रंथ तजे ते गरिट्ठ । स०॥९॥
अर्थ-नवमे अध्ययनेरे वीजा अंगमां के० वीजु अंग जे सूयगडांग सूत्र वेहनानवमा अध्ययनने विपे एम कायं छे. घरमां दीव न दीठ के० घरमा गृहस्थे दीवो न दीगे; माटे दीक्षा ले छे. ॥ यत:-"गिहे दीवमपासंता, पुरिसादाणिया नरा । ते धीरा बंधमुक्का, नावकखंति जीवियं ॥१॥इति सूयगडांग सूत्रे नवमे अध्ययने ।। अर्थ-गिहे दीवम