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________________ (५२) महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी कृत. दशाश्रुतस्कंधमां नवप्रकारनां नियाणां कहांछे. ते मध्ये धुरनां सात नियाणां कामभोगनां छे, ते उत्कृष्टे रसे निया| कर्यु होय तो समकित न पामे; अने जो मंदरसेनिया कयु होय तो मुखे समकित पामे. जेम कृष्ण, वासुदेव निया' करीने उपन्या छे, तेहने पण समंकितनी प्राप्ति थइछे. कोइ दुदिओ वोल्यो जे वासुदेवनी पदवी पाम्या एटले निया पूरु थयु, माटे वासुदेवनी पदवी पाम्या पछी समकित पाम्पाछे तेम द्रौपदी पण पांच भरतार पामी एटले निया पुरु थयु पछी परणीने समकित पामी ते खाटुं कहेछे. जे माटे निया [ तो भव लगे पहोंचे. केमके दशाश्रुतस्कंधमाज नवमुं नियाj दीक्षानुं का छे ते दीक्षा लोधी एटले निया' पुरुं थयु जोइए तेवारे तेहज भवनेविषे केवलज्ञान उपज्यु जोहए ते केवलज्ञान उपजवानी तो दीक्षाना नियाणावालाने ना कही छे. तद्यथा-"एवं खलु समणाउसो निग्गंथे वा निग्गंथी वा नियाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइअ अपडिकते सव्वं तं चेव से णं मुढे भवित्ता आगाराउ अणागारं पवएजा, सेणं तेणेव भवग्गहणेणं सिजेजा जाव दुरकाणं अत्तं करेजा,नो इगट्टे समढे ॥” इत्यादि. एमां एम कयूं जे, ते दीक्षाना नियाणा पालों ते भवमा माक्षे न जाय. तेमाटे निया ते भव पूरो थाय त्यां लगे पहोंचे. पण मंदरसे नियाणु कयु होय तो सम्यक्त्वादिक गुण मुखे पामे. एक केवलज्ञान न पामे ते माटे द्रौपदीर्नु नियाणुं मंदरसेज छे. ते कारणे वाल्यावस्थाने विषे समकित पामी सभवे छे वाकी तो आम्नायविना सूत्र अक्षर देखीने अर्थ करीश तो एहज दशाश्रुतस्कंधमां त्रीश थानके महा मोहनीय कर्म वांधे. ते महा मोहनी तो उत्कृष्टी सीत्तर कोडा कोडी स्थिति छे तो परदेशी राजाने समकित अणुव्रतनी प्राप्ति न थइ जोइए. जे माटे परदेशी राजाए -तो घणा पंचद्रिय जीवोनी हिंसा करी छे ते तो रायपसेणीसूत्रमा प्रसिद्ध छे. ते महामाहनी वांधीने घणो संसार रझळ्यो जोइए पण ते तो एकावतारीछे तेवारे ए सूत्र कम मलशे ? अने सूत्रमा तो द्रौपदीए पूजा करी तेबारे सूर्याभने भलाग्यो छे ते लेखे पण समकिती तो अवश्य ठरेज छे. वली परणवानी धक पकमां महामोहनी भीडमां जिनपूजानी करणी सांभरीछे, ए पक्की श्रद्धावंतीनां लक्षण छे. ते माटे द्रौपदी मुलभ बोधि हती; माटे -जिनपूजा सांभरीछे. अहियां कोइ कहेशे जे एकज वार पूजी कहीछे, पछीतो कहीए.पूजी नथी. तेहने कहीए जे एकवार पण कहोछे. अने द्रौपदीए खाधु तो एकवार पग नथी का माटे खाधु पण नहि होय. वली तुंगीया नगरीमा श्रावके साधु, एकजवार पांचाछे, तथा आणंद कामदेवादिके भगवंतने एकजवार वांद्याछे ते केम वीजीचार नहिज वांया होय ! वली जो परणतां मोहनी भीडमां जिनपूजा करीछे तो वीजे काले तो अवश्य पूजा करीन इशे एमां शी शंकाछे वली मूर्ख कहेछ जे ए स्त्री वतावीतो कोइ श्रावक कां न कह्यो ? 'तेने कहीए जे प्रभुजीने रेवती श्राविकाएज औषध वहोराव्यु तो श्रावके वहोराव्यु एम का न कयु ? वली प्रथम सिद्ध मरुदेवीमाता थयां, तथा वीर प्रभुनो अभिप्राय छ मास पांच दिन उणे चंदनवालाए पूरो करयोछे तथा संगमाना उपसर्गने छ महीने वत्सपाली डोसीए पार[ परमाने कराव्यु छे. वली ए चावीशीमां मल्लिनाथजी अनंत चोवीशीए
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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