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________________ गाथा ६३ ] क्षपरणासार [ ५७ -- अर्थ:- -बन्धसे अधिक उदय और उदयसे अधिक संक्रमण होता है । इसप्रकार अनुभाग के विषय में अनंतगुणित गुणश्रेणि जानना चाहिए अर्थात् यहां अधिकका प्रमाण अनन्तगुणा है । विशेषार्थ :- अनुभागकी अपेक्षा तत्काल होनेवाला बन्ध अल्प है, बन्धसे उदय अनन्तगुणा है जो कि चिरंतनसत्त्व के अनुभागस्वरूप है, उदयसे संक्रमण अनन्तगुणा है, क्योंकि अनुभागसत्त्व अनन्तगुणाहीन होकर उदयमे आता है, किन्तु चिरतनसत्त्वका संक्रमण तदवस्थरूपसे ही परप्रकृति में सक्रमित होता है । यह अल्पबहुत्वका कथन घातिया कर्मसम्बन्धी है । 'गुणसेढि गुणा य वेदगो दु अणुभागों । गणादियंतसेढी पदेसग्गेण बोधव्वा || ६३ ।।४५४।। अर्थः- अप्रशस्त प्रकृतियोके अनुभागका प्रतिसमय अनन्तगुणितहीन गुणश्रेणिरूपसे वेदक होता है, किन्तु प्रदेशाग्रकी अपेक्षा गणनातिक्रान्त अर्थात् असंख्यातगुणित श्रेणिरूपसे वैदक जानना चाहिए । विशेषार्थ :- विवक्षितसमय में अनुभागोदय बहुत होता है । इसके अन्तर• समय में अनुभागका उदय अनन्तगुणा- अनन्तगुणाहीन जानना चाहिए । प्रदेशोदय विवक्षित समय में अल्प होता है, इसके अनन्तरसमय में असंख्यातगुणा होता है । इसीप्रकार उत्तरोत्तर समयों में सर्वत्र असंख्यातगुणा प्रदेशोदय जानना चाहिए । १. गुणसेढि अणतगुणेणूगाए वेदगो दु अणुभागे । गणरणादियंतसेढी पदेस अग्गेण वोढव्वा ॥१४६॥ क० पा० सुत्त पृष्ठ ७७० । धवल पु० ६ पृष्ठ ३६३ । जयधवल मूल पृष्ठ १९६६ । २. अस्सि समए अणुभागुदयो बहुगो से काले अनंतगुणहीणी । एव सव्वत्य । (क० पा० सुत्त सूत्र ३५६ पृष्ठ ७७०) तदो समए समए अनंतगुणहीणमणतगुणहीणमपसत्यकम्माणमणुभागमेसो वेदिति गाहा पुवद्धे समुदयत्थो । (धवल पु० ६ पृष्ठ ३६३ टि० नं० १ ) । जयधवल मूल पृष्ठ १६६७ । ३. पदेस सुदयो अस्सि समए थोवो । से काले असंखेज्जगुणो । एवं सव्वत्थं । क० पा० सुत्त सूत्र ३५७ पृष्ठ ७७० । गणणादियंत सेढी एवं भणिदे असखेज्जगुणाए सेढीए पदेसग्गमेसो समय पछि वेदेदिति भणिदं होई । (धवल पु० ६ पृ० ३६३ टि० नं० १)
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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