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________________ गाया २१-२२] क्षपणासार [ २५ शंका:-सदृश परिणामवाले अनिवृत्तिकरणका प्रथम स्थितिकाण्डकघात विसदृश कैसे सम्भव है ? समाधानः--सदृश परिणाम होते हुए भी स्थिति सत्कर्म में विशेषता होनेसे प्रथम स्थिति काण्डकमें विभिन्नता सम्भव है। दो जीव एक साथ क्षपकश्रेणिपर आरूढ़ हुए उनमे से एकका स्थिति सत्कर्म संख्यातभाग अधिक है और दूसरेका संख्यातभागहीव है। जिसका स्थिति सत्कर्म सख्यातभाग अधिक है उसके अपूर्वकरणसम्बन्धी प्रथमस्थितिकाण्डकघातसे लेकर अनिवृत्तिकरणसम्बन्धी प्रथमस्थितिकाण्डकपर्यन्त सर्वस्थितिकाण्डकघात दूसरे जीवके स्थितिकाण्डकघातोसे संख्यातभाग अधिक होता है। जिसका स्थिति सत्कर्म संख्यातभाग अधिक है उस जीवके अपूर्वकरणके घातसे शेष बचा हुआ स्थिति सत्कर्म जितना विशेष अधिक होता है उसको अनिवृत्तिकरणके प्रथमस्थितिकाण्डकघातद्वारा ग्रहण करता है इसलिए अनिवृत्तिकरणका उत्कृष्ट प्रथमस्थितिकाण्डकघात संख्यातवांभाग अधिक होता है। शंकाः-यदि किसीका स्थितिसत्कर्म संख्यातगुणा हो तो उसका प्रथम उत्कृष्टकाण्डकघात संख्यातगुणा होगा ? समाधानः-उत्कृष्ट प्रथम स्थितिकाण्डकघात संख्यातगुणा नहीं हो सकता, क्योंकि संख्यातगुणा स्थितिसत्कर्म असम्भव है । शंकाः-संख्यातगुणास्थितिसत्कर्म असम्भव क्यो है ? समाधान:- अपूर्वकरणके चरमसमयमें घात किया हुआ स्थितिसत्कर्म जो अवशेष रहता है वह उत्कृष्ट भी जघन्यसे सख्यातवेभाग अधिक होनेका नियम है । इसलिए अनिवृत्तिकरणके प्रथमसमयसम्बन्धी जघन्यस्थितिकाण्ड कसे उत्कृष्टस्थितिकाण्डक , संख्यातभाग अधिक है । इसीप्रकार प्रथम अनुभागकाण्डक भी विसदृश होता है । : प्रथमस्थितिकाण्डकके निर्लेपित होनेपर त्रिकालवति अनिवृत्तिकरणकाल में । वर्तन करनेवाले सर्व जीवोके घातसे शेष बचा हुआ स्थिति सत्कर्म समान ही होता है, क्योंकि समान परिणामके द्वारा घात होकर शेष बचा हुआ है। समाव स्थिति सत्कर्मसम्बन्धी द्वितीयादि स्थितिकाण्डक भी समान होते हैं, क्योंकि कारणकी समानता होनेपर कार्य समान होते हैं, समान कार्यको छोड़कर अन्यकार्य असम्भव है। इसीप्रकार
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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