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________________ गाथा २३२ ] लब्धिसार [ १८७ सख्यातवेभागप्रमाण होता है । तब स्थितिबन्ध सम्बन्धी अल्पबहुत्व इसप्रकार हैनाम और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध सबसे स्तोक होता है, उससे चार कर्मोका स्थितिबन्ध सख्यातगुणा होता है । तथा उससे मोहका स्थितिबन्ध सख्यातगुणा है । तत्पश्चात् स्थितिबन्ध पृथक्त्वके व्यतीत होनेपर मोहनीयकर्मका भी स्थितिबध पल्योपमप्रमाण होता है। उसके पश्चात् जो अन्य स्थितिबन्ध होता है वह स्थितिबन्ध आयुकर्मके अतिरिक्त शेष कर्मोका पल्योपमके सख्यातःभागप्रमाण होता है, क्योकि मोहनीयकर्मका भी संख्यात बहुभागोंसे हीन तत्काल होनेवाला स्थितिबन्ध पल्योपमके सख्यातवे भागमात्र होता है । उस समय स्थितिबन्ध सम्बन्धी अल्पबहुत्व इसप्रकार हैनाम और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है, उससे ज्ञानावरणादि चार कर्मोका स्थितिबन्ध परस्पर तुल्य होकर सख्यातगुणा है, उससे मोहनीयकर्मका स्थितिवध सख्यातगुणा है । जब तक नाम और गोत्रकर्मका दूरापकृष्टि सज्ञावाला अन्तिम पल्योपमका सख्यातवाभागप्रमाण स्थितिबन्ध प्राप्त होता है, तबतक अल्पबहुत्वका यह क्रम विच्छिन्न नही होता । तत्पश्चात् नाम व गोत्र कर्मका अन्य स्थितिबन्ध पल्योपमके असख्यातवे भागप्रमाण है, क्योकि दूरापकृष्टि स्थितिबन्धसे लेकर असख्यात बहुभागोका स्थितिबन्धापसरणका नियम है । इससे ज्ञानावरणादिकर्मोका स्थितिबन्ध असख्यातगुणा है, क्योकि अभी दूरापकृष्टिसज्ञक बन्ध प्राप्त नहीं हुआ है। उससे मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध सख्यातगुणा है। इस अल्पबहुत्वविधिसे बहुत हजार स्थितिबन्ध व्यतीत होने पर ज्ञानावरण आदि चार कर्मोका दूरापकृष्टिविषयक स्थितिबन्ध प्राप्त होता है। उसके बाद इन कोका असख्यात बहभागवाला स्थितिबन्धापसरण होता है । उस समय नाम व गोत्र कर्मका स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। उससे ज्ञानावरणादि चार कर्मोका स्थितिवन्ध असख्यातगुणा है। उससे मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध असख्यातगुणा है, क्योकि अभी भी पल्योपमके सख्यातवे भागप्रमाण स्थितिबन्ध है, दूरापकृष्टिको नहीं प्राप्त हुआ है। ___ इसी क्रमसे बहुत हजार स्थितिबन्ध बीत जाने पर मोहनीयकर्मका दूरापकृष्टिसज्ञक स्थितिबन्ध होता है। आगे भी सख्यातहजार स्थितिबन्धापसरण इसी अल्पवहत्व कमसे व्यतीत होते है, किन्तु इन बन्धापसरणोमे सभी कर्मोके पल्योपमके असख्यातवे भागप्रमाण स्थितिबन्धोमे असख्यातगुणा हानिरूपसे अपसरण करता है'। १ ज ध. पु १३ पृ. २३५-२४२ ।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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