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________________ गाथा १३४ - १३८ ] लब्धिसार ठिदिखंडामुक्कीरण दुम्बरिमसमश्रोत्ति चरिमसमये च । श्रोक्कदिकालीगंददव्वाणि गिसिंचदे जम्हा ॥ १३४ ॥ श्रवस्से संपहियं गुणसेढीसीसयं असंखगुणं । पुव्विल्लादो यिमा उवरि विसेसाहियं दिस्सं ॥ १३५॥ sara य ठिदीदो चरिमेदर फालिपडिददव्वं ख । संखासंखगुणणं तेगुवरिम दिस्समाणमहियं सीसे ॥१३६॥ जदि गोउच्छविसेसं रिणं हवे तोवि धणपमाणादो । जम्हा असंखगुणूणं ण गणिज्जदि तं तदो एत्थ ॥१३७॥ तत्तक्काले दिस्सं वज्जिय गुणसेढिसोसयं एक्कं । उवरिमठिदी वट्टदि विसेसहीणक्कमेणेव ॥१३८॥ [ १२३ अर्थ – सम्यक्त्वंप्रकृति की आठ वर्ष स्थिति शेष रहने के समयमे मिश्र ( सम्यग्मिथ्यात्व ) और सम्यक्त्व प्रकृति सम्बन्धी काण्डक की चरमफालियो का द्रव्य, पूर्व समय के सम्यक्त्वमोहनीय के सत्त्व द्रव्य से असख्यातगुणा है । सम्यक्त्व मोहनीय के सत्त्व द्रव्यसे, स्थितिकाण्डकोत्कीर्णकालके द्विचरम समय पर्यन्त अपकर्षित फालिद्रव्य असख्यातवे भाग है और अन्तिम समयमें अपकर्षित फालिद्रव्य संख्यातवे भाग है । यह द्रव्य निक्षेप किया जाता है ।।१३३-३४। सम्यक्त्वप्रकृति की आठ वर्ष स्थिति शेष रहने के समय गुणश्रेणीशीर्ष का द्रव्य श्रधस्तन गुरणश्रेणिशीर्षके द्रव्यसे नियमत असख्यातगुणा है । उपरिम गुण रिण शीर्षो का दृश्यमान द्रव्य अपने अपने से पूर्व गुणश्र ेगिशीर्ष के द्रव्यसे विशेषाधिक है ।। १३५ ।। सम्यक्त्वप्रकृति की आठ वर्ष प्रमाण स्थिति शेष रहने पर समस्त स्थित द्रव्य से चरम फालि का द्रव्य सख्यातगुणा हीन है और अन्य फालियो का द्रव्य असख्यान - गुणा हीन है इसलिये उपरितन गुणश्र ेणिशीर्षका द्रव्य विशेष अधिक है || १३६॥ यद्यपि अधस्तन गुणेणिशीर्ष से उपरितन गुण रिगशीर्ष मे गोपुच्छ चय ऋण है अर्थात् घटता है तो भी धन ( मिलाया जाने वाला द्रव्य ) के प्रमाण से
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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