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________________ गाथा १३ ] क्षपणासार उदीरणा होना सम्भव है अर्थात् जिन कर्मप्रदेशानोंका स्थिति व अनुभागमें अपकर्षण होता है वे अनन्तरसमय में ही वृद्धि हानि-अवस्थान व सक्रमणके लिए भजनीय है, अनन्तरसमयमें अपकर्षितप्रदेशाग्रमे से कुछ तो पुन: अपकर्षित हो जाते है अपकर्षण नहीं होता, कुछ प्रदेशाग्रोकी वृद्धि होती है और कुछकी वृद्धि नहीं होती। अपकर्षितप्रदेशाग्नोमेसे कुछ प्रदेशाग्न अपने स्थान पर स्थित रहते हैं और कुछ अन्य क्रियाको प्राप्त हो जाते है । इसीप्रकार सक्रमण व उदयके विषयमे भी योजना करनी चाहिए । अपकर्षितप्रदेशानकी दूसरे समय मे पुनः अपकर्षण आदिरूप प्रवृत्ति होनेमे कोई बाधा नहीं है । कर्म प्रदेशाग्रका स्थितिमुखसे या अनुभागमुखसे ही अपकर्षण होता है, अन्यप्रकारसे अपकर्षण नही होता, ऐसा जानना चाहिए । 'एक्कं च ठिदिविलेसं तु असंखेज्जेसु दिदि विसेसेसु । वड्ढेदि हरस्सेदि व तहाणुभागे सणंतेसु ॥१३॥४०४॥ अर्थः--एक स्थितिविशेषको असख्यात स्थितिविशेषोमे बढ़ाता भी है और घटाता भी है। इसीप्रकार अनुभागविशेषको अनन्त अनुभागस्पर्धकोमे बढाता और घटाता है। विशेषार्थः-एकस्थितिविशेषके उत्कर्षण होनेपर असंख्यात स्थितिविशेषोमें वृद्धि होती है, क्योकि उत्कर्षणसम्बन्धी जघन्यनिक्षेप भी आवलिके असख्यातवेभाग है उससे कममे नही। एक स्थितिविशेषके अपकर्षण होनेपर असख्यातस्थितिविशेषोमे ह्रास होता है इससे कम मे नही। गाथा अनुसार अपकर्षणसम्बन्धी जघन्यनिक्षेप भी आवलीका तृतीयभाग है । अनुभागसम्बन्धी स्पर्धककी एकवर्गणामे उत्कर्णण या अप. कर्षण होनेपर नियमसे अनन्त अनुभागस्पर्धकोमे वृद्धि या ह्रास होता है। इससे अनुभागविषयक अपकर्षण-उत्कर्षणमें जघन्य व उत्कृष्ट निक्षेपका प्रमाण बतलाया गया है । स्थितिसत्कर्मकी अग्नस्थितिसे एसकमय अधिक स्थितिबन्ध होनेपर, स्थितिसत्कर्मकी अनस्थितिका उत्कर्षण नही होता, क्योकि अतिस्थापना और निक्षेपका अभाव १. जयषवल मूल पृ० २००६ । २. यह गाथा कसायपाहुडकी गाथा १५६वी के समान है (क० पा० सु० पृष्ठ ७७८ व धवल पु० ६ पृष्ठ ३४७), किन्तु क० पा० सु० मे 'ठिदि' और 'रहस्सेदि' के स्थानपर क्रमशः 'विदि' और 'हरस्से दि' पाठ है अतः क० पा० के आधारसे ही पाठ परिवर्तित किया गया है।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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