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________________ लब्धिसार [प्र. स. चूलिका १०० ] विशेषार्थ-यह गाथा कषायपाहुड की ६६ वी गाथा है। इस गाथा द्वारा यह बतलाया गया है कि दर्शनमोहनीय के उपशामक जीव का जब तक अन्तर मे प्रवेश नही होता, तब तक उसके मिथ्यात्व का उदय नियम से होता है उसके पश्चात् उपणम सम्यक्त्वकाल के भीतर मिथ्यात्व का उदय नहीं होता, परन्तु उपशमसम्यक्त्वकाल के समाप्त होने पर मिथ्यात्व का उदय भजनोय है। इसप्रकार इस गाथा द्वारा तीन विशेष अर्थ कहे गये हैं । तद्यथा-'मिच्छत्त वेदणीय कम्म' ऐसा कहने पर जिस कर्म के द्वारा मिथ्यात्व वेदा जाता है वह मिथ्यात्ववेदनीयकर्म उदय अवस्था से युक्त उपशामक के नियम से होता है ऐसा जानना चाहिये । इसप्रकार गाथा के पूर्वार्ध का पद सम्बन्ध है। इसलिये मिथ्यात्वकर्म का उदय दर्शनमोह के उपशामक के नियम से होता है। शंका-सूत्र द्वारा अनुपदिष्ट उदय विशेषण कैसे उपलब्ध होता है ? समाधान-ऐसी आशङ्का नही करना चाहिये, क्योकि अर्थ के सम्बन्ध से ही उसप्रकार के विशेषण की यहा उपलब्धि होती है । अथवा जो वेदा जावे वह वेदनीय है । मिथ्यात्व ही वेदनीय मिथ्यात्ववेदनीय है । उदय अवस्था से परिणत मिथ्यात्वकर्म, यह इसका तात्पर्य है। वह उपशम करनेवाले जीव के होता है । इसप्रकार उक्त विशेपण सूत्रोक्त हो जानना चाहिए । 'उवसते आसाणे' ऐसा कहने पर दर्शनमोहनीय की उपशान्त अवस्थामें उपशमसम्यग्दृष्टिपने को प्राप्त हुए जीव के मिथ्यात्व वेदनीयकर्म के उदयका आसान अर्थात् विनाश ही रहता है, क्योकि अन्तर प्रवेशरूप अवस्थामे उसके उदयका अत्यन्ताभाव होने से उसका उदय निषिद्ध ही है तथा उसका अनुदय ही उपशान्तरूपसे यहा पर विवक्षित है । अथवा 'उवसते' अर्थात् उपशमसम्यक्त्व काल के भीतर तथा 'आसाणे' अर्थात् सासादनकाल के भीतर मिथ्यात्वका उदय नही है । इसप्रकार वाक्यशेष के वश से मूत्र का अर्थ के साथ सम्बन्ध करना चाहिए । 'तेण पर होदि भजिदवो ऐसा कहने पर उपशमसम्यक्त्वकाल के समाप्त होने पर तदनन्तर मिथ्यात्वकर्म के उदयसे वह भजनीय है, क्योकि मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व मे से अन्यतर के उदय का वहा विरोध नही पाया जाता है अर्थात् उन तीनो मे से किसी एक का उदय अवश्य होता है । ' जघ पु १२ पृ ३०७-८ ।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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