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________________ लब्धिसार [प्र. स. चूलिका "प्रथमोपशमसम्यक्त्व चूलिका" नधिमार गन्य मे १०६ गायायो द्वारा प्रथमोपशम सम्यक्त्व नामक प्रथम र ममान हो चुका है, किन्तु कपायपाहड ग्रन्थ मे प्रथमोपशम सम्यक्त्व के मा में निम्न गाथाम्रो मे कुछ विशेप वर्णन किया गया है अत उसे उपयोगी जानवारा महिन रहा पर प्रथमोपणमसम्यक्त्व चूलिका के रूप मे उद्ध त किया गया है सव्वेहि ढिदिविसेसेहिं उवसंता होति तिणि कम्मंसा । एपकम्हि य अणुभागे रिणयमा सव्वे दिदि विसेसा ॥१॥ प्रथ-दर्शनमोहनीय कर्म की तीनो प्रकृतिया सभी स्थिति विशेषो के साथ मान्न रहती है तथा सभी स्थिति विशेष नियमसे एक अनुभागमे अवस्थित रहते है । विशेषार्थ-यह कपायपाहुड की १०० वी गाथा है। इस गाथासूत्र में निजि कम्ममा' ऐसा कहने पर मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व का ग्रहण रना चाहिए, क्योकि दर्शनमोह की उपशामना का प्रकरण है। ये तीनो ही कर्म निग मभी स्थिति विशेषो के साथ उपशान्त रहती है, उनकी एक भी स्थिति नामान नहीं होती। अत मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की जघन्य स्थिति मेकर उमष्टम्थिति तक उन सब स्थिति विशेपो मे स्थित सब परमाणु उपशान्त ते, पद मिया । इसप्रकार उपगान्त हुए उन सब स्थिति विशेषो का अनुभाग " प्रगर का ही है । 'एककम्हि य अणुभागे' एक ही अनुभाग विशेष मे इन तीनो तिकी के सब स्थिति विशेप होते है । अन्तरायाम के बाहर अनन्तरवर्ती जघन्य नविना में जो अनुभाग है वही उससे उपरिम उत्कृष्ट स्थिति पर्यन्त समस्त चिमे होता है, अन्य नहीं होता । मिथ्यात्व का तो घात करने से शेष रहा निभानीय अनुभाग मब स्थिति विशेषो मे अवस्थित रूप से स्थित रहता है । र गम्मियान्त्र का भी जानना चाहिए, किन्तु इतनी विशेषता है कि • गग में यह अनन्तगग्गा हीन होता है । सम्यक्त्व का अनुभाग तो • मानणा हीन होता है, जो देशघाति द्विस्थानीयरूप होकर दारु समान , अनन्नबंभागनप में अवस्थित उत्कृष्ट स्वरूप एक प्रकार का सर्वत्र ०६-१० ।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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