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________________ गाथा ६२-६३ ] लब्धिसार [७५ उपशम सम्यग्दृष्टि के द्वितीय समय से लेकर जहा तक मिथ्यात्व का गुण सक्रम होता है वहा तक सम्यग्मिथ्यात्व का भी सक्रमण होता है, क्योकि सूच्यगुल के असख्यातवे भाग के प्रतिभागरूप विध्यातगुणसक्रमण-द्वारा सम्यग्मिथ्यात्व के द्रव्य का सम्यवत्व मे सक्रमण उपलब्ध होता है । इस गुणसक्रमण के पश्चात् सूच्यगुल के असख्यातवे भाग प्रमाणवाला मिथ्यात्व द्रव्य का विध्यातसक्रमरण होता है । जब तक उपशमसम्यग्दृष्टि और वेदक सम्यग्दृष्टि है । विध्यात् अर्थात् मन्द हुई है विशुद्धि जिसकी ऐसे जीव के स्थितिकाडक, अनुभागकाडक और - गुणश्रेणि आदि परिणामो के ‘रुक जाने पर प्रवृत्त होने के कारण यह विध्यातसक्रमण है। जब तक मिथ्यात्व का गुणसक्रमण होता है तव तक एकान्तानुवृद्धिरूप परिणामो के द्वारा दर्शनमोहनीय को छोड कर शेष कर्मो के स्थितिकाडक घात और गुणश्रेणी निक्षेप होते रहते है, किन्तु उपशान्त अवस्था को प्राप्त मिथ्यात्व का स्थितिकाडक आदि का अभाव है। अनिवृत्तिकरणरूप परिणामो के उपरम (समाप्त) हो जाने पर भी पूर्व प्रयोग वश कितने ही काल तक अन्य कर्मो का स्थितिकाडक आदि होने मे बाधा नही उपलब्ध होती' । अब ५ गाथाओंमें अनुभागकाण्डकोत्कोरणकाल प्रादि २५ पदों का अल्पबहुत्व कहते हैं विदियकरणादिमादों गुणसंकमपूरणस्स कालोत्ति । वोच्छं रसखंडुक्कीरणकालादीणमप्प बहु ॥१२॥ अर्थ-अपूर्वकरण के प्रथम समय से गुणसक्रमणकाल के पूर्ण होने तक किये जाने वाले अनुभागकाडकोत्कीरणकालादि का अल्पबहुत्व कहेगे । (इस प्रकार प्रस्तुत गाथा मे प्राचार्यदेव ने आगे किये जाने वाले कथन की प्रतिज्ञा की है । ) अंतिमरसखंडुक्कीरणकालादो दु पढमो अहिमो। तत्तो संखेज्जगुणो चरिमट्टिदिखंडहदिकालो ॥१३॥ अर्थ-ग्रन्तिम अनुभागकाडकोत्कीरण काल से प्रथम अनुभाग काडकोत्कीरणकाल विशेषाधिक है। उससे अन्तिम स्थितिकाडक काल व स्थितिबधापसरणकाल सख्यातगुणा है। १ ध पु ६ पृ. २३५-३६; जयधवल पु. १२ पृ. २८२ से २८४ के प्राधार से ।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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