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________________ क्षपणासार [गाथा १-५ लेश्या कौनसी होती है ? नियमसे शुक्ल ही होती है, क्योंकि सुविशुद्धलेश्याकी कारणभूत मन्दतमकषायके उदयमें शुक्ललेश्याकी प्रवृत्ति पाई जाती है, अन्य लेश्याओकी नही। शुक्ललेश्या भी वर्धमान है हीयमान नहीं है, क्योकि प्रतिसमय कषायानुभागस्पर्धक अनन्तगुणे हीनरूपसे उदयमे आनेसे शुभलेश्यारूप परिणामोमे वृद्धि के अतिरिक्त हानि होना असम्भव है'। वेद कौनसा होता है ? स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपु सकवेद इन तीनो वेदोंमे से कोई एक वेद होता है, क्योकि तीनो वेदोके उदयके साथ श्रेणि चढने के प्रतिषेधका अभाव है अर्थात् तीनो वेदोमे से किसी भी वेदोदयके साथ क्षपकश्रेणि चढ सकता है । इतनी विशेषता है कि द्रव्यसे पुरुषवेदके साथ ही श्रेणि चढ़ सकता है, क्योकि अन्यद्रव्यवेदके साथ श्रोणि चढनेका विरोध है। यहापर गति आदिकी भी विभाषा करनी चाहिए, क्योकि यह देशामर्सक सूत्र है । इसप्रकार प्रथमगाथाकी विभाषा समाप्त हुई आगे द्वितीयगाथाकी विभाषा इसप्रकार है _दूसरी प्रस्थापन गाथाका प्रथमपद-कौन-कौनकर्म पूर्वबद्ध हैं ? यहांपर प्रकृतिसत्कर्म, स्थितिसत्कर्म, अनुभागसत्कर्म और प्रदेशसत्कर्मका अनुमार्गण करना चाहिए । सर्वप्रथम प्रकृतिसत्कर्म अनुमार्गणके लिए यहापर दर्शनसोहनीय, अनन्तानुवन्धीचतुष्क और तीन आयुके अतिरिक्त शेष कर्मप्रकृतियोका सत्कर्म है । इतनी विशेषता है कि आहारकशरीर व आहारकअङ्गोपाङ्ग और तीर्थङ्करप्रकृतिका सत्त्व भजितव्य है, क्योकि इनका सर्व जीवोमे नियमरूपसे होने का अभाव है। आयुकर्मके अतिरिक्त जिन प्रकृतियोका सत्कर्म है उनका स्थिति सत्कर्म अन्त'कोडाकोडीसागर प्रमाण है । अनुभागसत्कर्म भी अप्रशस्त प्रकृतियोका द्विस्थानिक और प्रशस्त प्रकृतियोका चतु स्थानिक है । सर्वप्रकृतियोका प्रदेशसत्कर्म अजघन्य-अनुत्कृष्ट है । किन-किन कर्माशोको बाधता है ? यहापर भी प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, अनुभागबन्ध और प्रदेशबन्धका अनुमार्गण करना चाहिए' । कितनी प्रकृतियां उदयावली मे प्रवेश करती हैं ? सभी मूल प्रकृतियां उदयावलीमें आती हैं (प्रवेश करती है), किन्तु जो उत्तरप्रकृतियां विद्यमान हैं वे उदय या अनुदय (परमुखउदय) स्वरूपसे उदयावलीमे प्रवेश करती है। कितनी प्रकृतियां उदीरणास्वरूपसे उदयावलीमे प्रवेश करती है ? आयु और वेदनीयकर्मको छोड़कर जितने भी वेदन १. जयधवल मूल पृ० १६४३ । २. जयधवल मूल पृ० १९४४ ।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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