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________________ पृष्ठ) पुज १७४ विषय विषय प्रति समय असख्यात गुणी हीन कृष्टि रचना तथा सूक्ष्म साम्पराय गुण स्थान के प्रथम समय मे मोह दीयमान द्रव्य मे असख्यात गुणी क्रमता की गुण श्रेणी अन्तरायाम आदि का अल्पबहुत्व १६६ सूक्ष्म कृष्टि करण के समय मे दीयमान द्रव्य का द्वितीयादि काण्डको के काल मे गुण श्रेणी के ऊपर विशेषहीन प्रादि रूप क्रम १५४ गोपुच्छता का निर्देश द्वितीयादि समयो मे क्रियमाण अधस्तन कृष्टि व अधस्तन अनुदीर्ण, उपरिम अनुदीर्ण, मध्यम अनुअन्तरकृष्टि निर्देश एव उनका प्रमाण प्ररूपण १ दीर्ण कृष्टियों का अल्पबहुत्व द्वितीयादि समयो मे दीयमान द्रव्य सम्बन्धी कथन १५५ / सूक्ष्म साम्पराय म क्षपक के अन्त में होने वाला गुण सूक्ष्म कृष्टियो को करने वाले के दश्यमान प्रदेश श्रेणी का निर्देश १७० प्रकृत मे दीयमान और दृश्यमान द्रव्य का निर्देश १७२ प्रकृत मे सक्रम्यमारण प्रदेशानका अल्पवहत्व १५६ | चरम काण्डक के पश्चात् काण्डक घात के अभाव के सूक्ष्म कृष्टि मे सक्रान्न द्रव्य के प्रमाण को प्राप्त प्रतिपादन पूर्वक मोह के स्थिति सत्त्व का निर्देश १७३ करने का साधक मत बादर कृष्टियो मे सक्रान्त सूक्ष्म साम्पराय गुण स्थान के चरम समय मे बन्ध प्रदेशाग्र का अल्पबहुत्व। १५७ का प्ररूपण लोभ की द्वितीय संग्रह कृष्टि से तृतीय सग्रह कृष्टि उक्त गुण स्थान के चरम समय मे ही स्थिति , मे सक्रमण करने की अवधि सत्त्व का निर्देश १७४ बादर लोभ की प्रथम स्थिति मे समयाधिक प्रावली क्षीणकषाय के स्थिति-अनुभाग बन्ध के प्रभाव शेष रहने पर तृतीय व किंचिदून तृतीय कृष्टिका का कथन सूक्ष्म रूप परिणमना १६० क्षीण कषाय गुण स्थान मे स्थिति-अनुभाग काण्डक नवम गुण स्थान के चरम समय मे स्थिति बन्ध धात का प्रमाण १७६ निर्देश | क्षीण कषाय के चरम काण्डक का ग्रहण तथा वहा नवम गुण स्थान के चरम समय मे स्थिति सत्त्व पर देयादि द्रव्य का विधान १७७ निर्देश १६१ क्षीण कषाय को कृतकृत्यक सज्ञा की प्राप्ति तथा सूक्ष्म साम्पराय का कथन इसके द्विचरम मे उदय-व्युच्छिन्न प्रकृति का निर्देश १७८ पर्वत्रय के कथनपूर्वक अवस्थित गुण रिण का मानादि कषायत्रय सहित श्रेण्यारोहक जीव के पायाम १६३ विषय मे प्रथम स्थिति आदि का विशेष निर्देश १७९ अपकृष्ट द्रव्य के देने का विधान १६३ | स्त्री वेदोदय सहित श्रेण्यारोहक जीव के स्त्री वेद द्वितीयादि समयो में दिया गया द्रव्य की प्रथम स्थिति के प्रमाणादि का निर्देश १८२ प्रथम समयवर्ती सूक्ष्म साम्पराय के दृश्यमान नपु सक वेदोदय सहित श्रेण्यारोहक जीव के प्रथम प्रदेशाग्र की श्रेणि प्ररूपणा स्थिति प्रमाणादि के विषय मे विशेष कथन १८३ चरम निषेक का द्रव्य प्रमाण तथा दीयमान द्रव्य क्षीण कषाय के चरम समय मे सत्व व्युच्छिन्न की प्ररूपणा १६६ प्रकृतियो का निर्देश १८४ प्रकृत मे दृश्यमान द्रव्य १६८ अनन्त चतुष्टय की उत्पत्ति का कारण व इसकी द्वितीय स्थिति काण्डक के प्रथमादि समयो मे गुण विशेषता १८५ श्रेणी शीर्ष का अल्पबहुत्व १६८ | किस कर्म के नाश से कौनसा गुण स्थान होता है ? १८५ १७४ १६६
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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