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________________ १९६] क्षपणासार [ गाथा २२७-२२६ जाता था उससे असंख्यातगुणा द्रव्य सयोगकेवली अपकर्षित करते हैं । गुणश्रेणिनिक्षेपका आयाम संख्यातगुणा हीन है, क्योंकि छद्मस्थके परिणामोसे केवलोके परिणाम विशुद्धतर हैं, ऐसा ११वी गुणश्रेणिप्ररुपणामें कहा गया है। इसप्रकार आयुकर्मको छोड़कर शेष तीनअघातिया कर्मोंके प्रदेशोंकी असख्यातगुणश्रेणिनिर्जरा करनेवाले तथा धर्मतीर्थको फैलानेवाले उत्कृष्टरूपसे कुछकम पूर्वकोटि कालतक बिहार करते हैं । तीर्थङ्करके वलीके और अन्य केवलियोके जघन्यकालका उत्कृष्टकालप्रमाण आगमसे जान लेना चाहिए। तीर्थङ्करकेवली समवशरणविभूतिके साथ बिहार करते हैं। पडिसमयं दिव्वतमं जोगी णोकम्मदेहपडिबद्धं । समयपबद्धं बंधादि गलिदवसेलाउमेत ठिदी ॥२२७॥६१८॥ अर्थ-सयोगिजिन प्रतिसमय औदारिकशरीररूप नोकर्मसम्बन्धी आहारवर्गणारूप समय प्रबद्धको बांधते हैं जिसकी स्थिति सयोगिजिनसे पूर्व अवस्थामें व्यतीत हुई आयुके बिना शेष बची आयुप्रमाण जानना । विशेषार्थ-नोकर्मवर्गणा ग्रहणकरना ही आहारमार्गणा है और इसका सद्भाव केवलीभगवान्के है, क्योकि ओज, लेप, मानसिक, कवल, कर्म और वोकर्मके भेदसे छहप्रकारका आहार है । इन छहप्रकारके आहारमे से कर्म व नोकर्मरूप दोप्रकारका आहार पाया जाता है। सातावेदनीयके समयप्रबद्धको ग्रहण करता है वह कर्मआहार है तथा औदारिकशरीररूप समयप्रबद्धको ग्रहण करता है वह नोकर्म आहार है । णवरि समुग्घादगदे पदरे तह लोगपूरणे पदरे। . णत्थि तिसमये णियमा णोकम्माहारयं तत्थ ॥२२८॥६१६॥ अर्थ-इतनी विशेषता है कि केवलीसमुद्घातको प्राप्त केवलीभगवान में प्रतरके दो, लोकपूरणके एक इन तीनसमयों में नोकर्मका आहार नही है अन्यसर्वकाल में नोकर्मका आहार पाया जाता है। अथानन्तर पश्चिमस्कंधद्वारका कथन करते हैंअंतोमुहुत्तमाऊ परिसेसे केवली समुग्घादं । दंड कवाट पदरं लोगस्स य पूरणं कुणदी॥२२६।।६२०॥ १. जयघवल मूल पृष्ठ २२७२ ।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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