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________________ १५६) क्षपणासार [ गाथा १८६ सानकी द्वितीयसंग्रहकृष्टि से मायाकी प्रथमसंग्रहकृष्टि में विशेष अधिक प्रदेशाग्रका संक्रमण होता है तथा मानकी तृतीयसंग्रहकृष्टिसे मायाकी प्रथमसंग्रहकृष्टिमें विशेष अधिक प्रदेशाग्र सक्रमित होते हैं। मायाकी प्रथमसंग्रहकृष्टिसे लोभको प्रथमसंग्रहकृष्टिमें विशेष अधिक प्रदेशाग्र संक्रमित होते हैं, मायाकी द्वितीयसंग्रहकृष्टिसे लोभकी प्रथमसग्रहकृष्टिमें विशेषअधिक प्रदेशाग्न सक्रमित होते हैं, मायाको तृतीयसंग्रहकृष्टिसे लोभकी प्रथमसंग्रहकृष्टिमे विशेष अधिक प्रदेशाग्र सक्रमित होते हैं। लोभकी प्रथमसंग्रहकृष्टिसे लोभकी द्वितीयसंग्रहकृष्टिमे विशेषअधिक प्रदेशाग्रका सक्रमण होता है, लोभकी प्रथमसंग्रहकष्टिसे लोभकी तृतीयसग्रहकृष्टि मे विशेषअधिक प्रदेशाग्रका संक्रमण होता है। अधिक क्रमसे द्रव्यका संक्रमण करनेवालेके ये दशस्थान हैं । क्रोधकी प्रथमसंग्रहकष्टि से मानकी प्रथमसग्रहकृष्टि में (पूर्वोक्त सक्रमणसे) संख्यातगुणित प्रदेशाग्रका सक्रमण होता है । क्रोधको ही प्रथमसंग्रहकष्टिसे क्रोधको ही तृतीयसंग्रहकृष्टिमे विशेषअधिक प्रदेशाग्रका संक्रमण होता है । क्रोधकी प्रथमसग्रहकृष्टि से क्रोधको द्वितीयसंग्रहकृष्टिमे सख्यातगुणे प्रदेशाग्रका सक्रमण होता है। विशेषार्थ-कृष्टिकरणकालके समाप्त होने पर अनन्तरसमयमें क्रोधको प्रथमसंग्रहकृष्टिका अपकर्षण करके उसका वेदन करनेवालेके क्रोधको द्वितीयसंग्रहकष्टिसे मानको प्रथमकृष्टिमैं अधःप्रवृत्तसंक्रमणद्वारा संक्रान्त किये जाते हैं वे कहे जानेवाले अन्यसक्रमणद्रव्यकी अपेक्षा स्तोक है । जिस सग्रहकृष्टिका अनुभाग अल्प होगा उसके प्रदेशाग्र बहुत होते हैं। बहुत प्रदेशोमे सक्रमण होनेवाले प्रदेश भी बहुत होते हैं, अतः पूर्वकथित सक्रमणद्रव्यसे यह सक्रमणद्रव्य विशेष अधिक है । पूर्व द्रव्यको पल्यके असंख्यात. भागसे खण्डितकर एकखण्डप्रमाण विशेष अधिक हैं । मानकी प्रथमसग्रहकृष्टि से मायावी प्रथमसग्रहकृष्टिमे सक्रमण होनेवाला द्रव्य विशेष अधिक है, क्योकि क्रोधको तृतीयकृष्टिकी प्रति ग्रहस्थानरूप मानको प्रथमकृष्टिकी अपेक्षा मानकी प्रथमकृष्टि की प्रतिग्रहस्थानरूप मायाको प्रथमसग्रहकृष्टि विशेष अधिक है। आधार विशेषअधिक होने के कारण अधिकप्रदेशोका सक्रमण होता है । यहांपर विशेषअधिक प्रमाणका प्रतिभाग आवलिका असख्यातवाभाग है इससे आगेके स्थानोमे सत्त्वकर्मके अनुसार ही विशेषअधिक संक्रमण होता है और सर्वत्र अध.प्रवृत्तसक्रमणभागहार है । शङ्का-क्रोध मान व मायाकी संग्रहकृष्टियोका द्रव्य अन्यकषायको सग्रहकृष्टियोमें होता है अतः वहांपर अध.प्रवृत्तसक्रमणभागहार होता है अतः यहाँपर अपकर्षणभागहार होना चाहिए जो अधःप्रवृत्तसक्रमणभागहार असख्यातगुणाहीन है ?
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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