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________________ १.२.२- ) [गाथा १३१ द्रव्य १३ है इसलिए १४ गुणा संक्रमण होता है अतः कोषको द्वितीय संग्रहकृष्टि में आयद्रव्य १८२ है । यहां १४ गुणा करनेका प्रयोजन कहते है क्षपणासार अनन्तर भोगने योग्य संग्रहकृष्टि में संख्यातगुणे द्रव्यका संक्रमण होता है वह यहां संख्यात के प्रमाण अपने गुणकारसे एक अधिक जानना । यही क्रोध की प्रथम संग्रहafrat और उसके पश्चात् क्रोधको द्वितोयसंग्रहकृष्टिको भोगता है इसलिये क्रोध की प्रथमसग्रहकृष्टि के अपकर्षितद्रव्यसे संख्यातगुणा द्रव्य द्वितीयसग्रहकृष्टिमें संक्रमित होता है । प्रथम संग्रहकृष्टिद्रव्यमे गुणकार १३ है अतः उससे एक अधिक ( १३+१) करनेपर यहां संख्यातका प्रमाण १४ होगा (१३४१४ - १८२ ) । अन्यसंग्रहकृष्टि के वेदककाल में संख्यातका प्रमाण अन्य होगा, उसे आगे कहेंगे । क्रोधको प्रथम संग्रहकृष्टि में आयद्रव्य वही है, क्योंकि वहां अनुपूर्वी संक्रमण पाया जाता है । इसप्रकार आयद्रव्यका कथन करके, अब व्ययद्रव्यको कहते हैं tant प्रथम संग्रहकृष्टिका द्रव्य कोषको द्वितीय, तृतीय व मानकी प्रथम - संग्रहकृष्टिमें संक्रमण कर गया अतः (१८२+१३+१३) क्रोधकी प्रथम संग्रह कृष्टिका व्ययद्रव्य २०८ - हुमा, कोषको द्वितीय संग्रहकृषिका द्रव्य 'क्रोधकी तृतीय व मानकी प्रथमसंग्रहकृष्टिमें संक्रमणकर गया इसलिए क्रोधकी द्वितीयसंग्रहकृष्टिका व्ययद्रव्य दो है तथा कोष की तृतीयसंग्रहकृष्टिका द्रव्य-मानकी प्रथम संग्रहकृष्टिमे ही संक्रमणकर गया अतः कोध की तृतीयसंग्रहकृष्टि में व्ययद्रव्य एक ही है । मानकी प्रथम संग्रहकृष्टिका द्रव्य मनको द्वितीय, तृतीय व मायाकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें संक्रमणकर गया इसलिए मानकी प्रथम संग्रहकृष्टिका' व्ययद्रव्य तीन है, मानकी द्वितीय संग्रहकृष्टिका द्रव्य मानकी तृतीय व मायाको प्रथम संग्रहकृष्टिमे संक्रमणकर गया अतः मानको द्वितीय - द्वितीय संग्रहकृष्टि में व्ययद्रव्य दो है। मानकी तृतीय संग्रह कृष्टिका द्रव्य मायाकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें ही संक्रमणकर गया अतः मानकी तृतीय संग्रहकुष्टि में व्ययद्रव्य एक है । मायाकी प्रथम संग्रहकृष्टिका द्रव्य द्वितीय, तृतीय व लोभको प्रथम संग्रहकृष्टिमें संक्रमणकर गया इसलिए मायाकी प्रथम संग्रहकृष्टिमे व्ययद्रव्य तोन है, मायाको द्वितीय संग्रहकृष्टिका द्रव्य मायाकी तृतीय और लोभको प्रथम सग्रहकृष्टिमें सक्रमित हुआ अतः मायाकी द्वितीय संग्रहकुष्टिमे व्ययद्रव्य दो है । मायाको तृतीय संग्रहकृष्टिका द्रव्य लोभको प्रथम संग्रहकृष्टि में ही संक्रमित हुआ इसलिए यहां व्ययद्रव्य एक हो है । लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टिका द्रव्य लोभकी द्वितीय व तृतीय संग्रहकृष्टि मैं गया इसलिए लोभको प्रथम संग्रहकृष्टिका व्ययद्रव्य दो है, 1
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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