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________________ गाथा २७६ ] लब्धिसार [ २३१ जानना चाहिए । जहां विशेष हो वहा विशेष जानना चाहिए । यहा संदृष्टिकी अपेक्षा चयहीन क्रम लिये पूर्वकृष्टि आदि की रचना निम्न प्रकार होती है पूर्वकृष्टिरचना अन्तिमकृष्टि Ir अध पूर्वकृषि पूर्वकृष्टियोमे अधस्तनशीर्षद्रव्य ) मिलानेपर समानरूप पूर्वकृष्टि - की रचना इसप्रकार होती है । पवक्रार आदिकरि अधस्तनशीर्षद्रव्य मिलानेपर समानरूप पूर्वकृष्टि रचना के नीचे ही अधस्तनकृष्टि द्रव्यद्वारा अपूर्वकृष्टि की समपट्टिकारचना निम्नप्रकार होती है संदृष्टि न०३ मे उभयद्रव्यविशेषद्रव्य मिलाने पर सदृष्टिकी आकृति निम्न प्रकार होती है । इसे गुपुच्छाकृति कहते हैं - अथः अच शीर्ष प्राध पूर्व कृष्टि की द्रव्य उभय। द्रव्य विशेष अपूर्वकृष्टि समपट्टिका योष द्रव्य द्रव्य अपूर्वकृति समपट्टिका -
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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