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________________ धर्मफल विशेप देशना विधि : ४४७ अंधकार नष्ट होता है, मोहरूपी अज्ञानताका नाश होता है। वे यावज्जीव कई करोडो भव्य प्राणियोंके मोहको नाश करते हैं। भगवानका उपदेश लोगोंके हृदय पर सीधा असर करता है अतः उनके मोहान्धकारको नष्ट करता है। सूक्ष्मभावप्रतिपत्तिरिति ॥२०॥ (५०१). मूलार्थ-सूक्ष्म भावका ज्ञान होता है ॥२०॥ विवेचन-सूक्ष्माणाम्-अनिपुण बुद्धि या सामान्य बुद्धिसे नहीं जाने जा सकनेवाले, भावानां-जीवादि । . जब लोगोका मोहांधकार नष्ट हो जाता है तो वे लोग सूक्ष्म पदार्थोंको भी विवेक सहित मीत्र समझ लेते है। ऐसा जीवादि भाव तत्त्वोंका उनको बोध होने लगता है। ततः श्रद्धामृतास्वादनमिति ॥२१।। (५०२) . .. मूलार्थ - और श्रद्धामृतका आस्वादन होता है ॥२१॥ • विवेचन-सूक्ष्म भावोंका ज्ञान होनेसे उनमें श्रद्धा होती है और उस श्रद्धाके अमृतको, यथार्थ तत्वको समझनेसे अमृत समान उसका पान कर आनंद लेते हैं। वे उसे हृदयरूपी जिहासे ग्रहण करते हैं और सत्य मानते हैं तथा श्रद्धा रखते हैं। . . . तता सदनुष्ठानयोग इति ॥२२॥ (५०३) मूलार्थ-तब अनुष्ठानका संबंध होता है ॥२२॥" ... विवेचन-जब लोग यथार्थ तत्त्वका ग्रहण कर लेते है तो उसके अनुसार आचरण करने लगते हैं इससे साधु व गृहस्थके
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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