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________________ धर्मफल देशना विधि : ४२३ विवेचन-एवं-जैसे अशुभ बंधनमें वैसे ही परिणामसे, शुभासम्यग्दर्शन आदि, मोक्षकारणमपि-मुक्तिका हेतु भी।। जैसे अशुभ परिणामसे पापबंध होता है वैसे ही मनके शुभ परिणामसे तथा शुभ अध्यवसायसे मोक्षकी भी प्राप्ति होती है । शुभ परिणामसे अशुभ कर्मबंध रुक जाते हैं और पापक्षय होकर मोक्ष प्राप्ति होती है। शुभ परिणाम बिना केवल क्रियासे मोक्ष नहीं मिलता। “तदभावे समग्रक्रियायोगेऽपि मोक्षा सिद्धरिति ॥३५।। (४७८) मूलार्थ-शुभ परिणामके अभावमे संपूर्ण क्रियाका योग होने पर भी मोक्षसिद्धि नहीं होती ॥३५॥ विवेचन-तदभावे-शुभ परिणामके न होने पर, समग्रक्रियायोगेऽपि-श्रमणोचित संपूर्ण क्रिया व बाह्य अनुष्ठान करने पर मी, मोक्षासिद्धेः-निर्वाण प्राप्ति नहीं होती। दिप मुनिपनके उचित सब बाह्य अनुष्ठान साधु करे और चारित्रके सब वाह्य आचारका पालन करे तो भी आचार व अनुष्ठानमें शुभ भाव न हो तो मोक्ष नहीं मिल सकता । अतः सिद्ध होता है किशुभ परिणाम ही मोक्षका मुख्य कारण है। वाह्य क्रियाओसे ऊंची स्थिति मिलती है पर शुभ परिणाम विना मोक्ष नहीं मिलता । सर्वजीवानामेवानन्तशो वेयकोपपात- श्रवणादिति ॥३६॥ (४७९)
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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