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________________ यतिधर्म देशना विधि : ३२१ ६. शकुनि - जो बार बार स्त्रीसेवनमें आमत हो । ७. तत्कर्म सेवी - जिल्हा आदिसे चाटने जैसे निंद्य कर्म करनेवाला | ८. पाक्षिकापाक्षिक- जिसे एक पक्ष अतिशय मोह व दूसरेमें अप मोह हो । ९. सौगंधिक- अपने लिंगको शुभ गंधवाला जीन कर सूवा करे 1 १०. आसक्त- वीर्यपात बाद भी आलिंगन बद्ध ही रहे । पुरुष व स्त्रीमें जो नपुंसक मेद बताया वह पुरुषाकृति तथा स्त्रीयाकृतिवाले नपुसकके लिये कहा है । उपरोक्त दस भेद नपुंसक आकृतिवाले नपुंसकके हैं। यह तीनों तरहके नपुंसकोंमें भेद है । शास्त्रमें कुल नपुंसक १६ कहे हैं। उपरोक १० दीक्षाके स्ययोग्य हैं। जो छ प्रकारके नपुंसक दीक्षाके योग्य निशीथाध्ययन सूत्रमें कहे हैं व ये हैं-अर्थात् निम्न छ प्रकार के दीक्षा के योग्य समझना । १. वर्द्धितक- राजाद्वारा अंतपुरकी रक्षाके लिये नाजर किया हुआ पुरुष । २. चिपित - जन्म होते ही अंगुलियोंके मर्दनसे वृषण गळायेहों वह पुरुष । ३. मत्रोपहत - मंत्रसे जिसका पुरुषवेद नष्ट हुआ हो । ४. औषध्युपहत - 'औषधिसे जिसका पुरुषवेद नष्ट हुआ हो । ५. ऋषिशस) जो ऋषि या देवके श्रापते पुरुषवेद नष्ट ६. देवशप्त होकर नपुंसक बना हो । ૨૧
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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