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________________ इससे निश्चय हो जाता है कि आ० हरिभद्रसूरिजी और आ० -मानदेवसूरिजी सं ५८२ मे हुए थे और दोनों समकालीन थे। ७. 'गुर्वावली' और 'पट्टावलियो 'में आ० हरिभद्रसूरि और आ० मानदेवसूरिजीको समकालीन आचार्य बताया गया है। फलतः इन सब पाठोंसे स्पष्ट हो जाता है कि आ० हरिभद्रसूरिजी वि सं ५८५ मे स्वर्गस्थ हुए हैं। आ० हरिभद्रसूरिजीके समयनिर्णयमे दूसरे मतके मुताविक वे वि सं. ७८५ लगभगमे स्वर्गस्थ हुए। इससे सिद्ध है कि ऊपरके जो पाठ दिये गये हैं वे सब इसके विरुद्ध जाते हैं। इसके लिये खुलासा किया जाता है कि ऊपर दर्शाये हुए सब पाठ युगप्रधान आ० हारिलसूरि कि जिनका नाम हरिगुप्त और आ० हरिभद्र भी है और जो वी नि सं. १०५५ वि. स ५८५ में स्वर्गस्थ हुए हैं उनकी जीवनघटनाके साथ संगत होते हैं। अर्थात्-- (१) 'पचसए' वाली पट्टावलियोकी गाथा आ० हारिलका स्वर्गसंवत् बताती है । वस्तुतः ‘पंचसए' के बदले 'सत्सए' पाठ मान लिया जाय तो वह गाथा हरिभद्रसूरिजीके स्वर्गवास समयके साथ लागू पड सके। (२) 'दुस्समकालथय'की अवरिम आ० हारिलके पीछे 'पचसए' वाली गाथा दी है और उसके पीछे जिनभद्रसूरिजीका समय बताया गया है वहां भी हारिल और हरिभद्रसूरिको एक माना जाय तो ही उनके पीछे आ० जिनभद्रसूरिजी होनेका संगत हो सकता है। १३) विचारश्रेणी के पाठके लिये भी ऊपरका ही समाधान है।
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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