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________________ १८ (१०) आवश्यक सूत्र - वृहद्वृत्ति - यह 'आवस्सय' नामक आगमकी बडी विवृति है। यह प्राप्य नहीं है; ग्रं ८४००० । (११) आवश्यक सूत्र विवृति याने शिष्यहिता - यह 'आवरस्य ' की टीका है, श्लो २२००० । (१२) उवएसपयपगरण ( विरहांकित ) - इसमें १०३९ पद्य आर्या में हैं । धर्मकथाकी यह उत्तम कृति है । (१३) ओधनियुक्ति वृत्ति - यह ' मोहनिज्जुत्ति की वृत्ति है जो मिलती नहीं । श्रीसुमतिगणिने इसको गिनाया है । (१४) कथाकोश - श्री सुमतिगणिकी नोंध में है । (१५) कर्मस्तव वृत्ति | (१६) क्षमावली - बीज | (१७) क्षेत्रसमास- वृत्ति - यह ' क्षेत्रसमास- प्रकरण ' की टीका है। जेसलमेरके भंडारमें इसकी पोथी है । (१८) चतुर्विंशतिस्तुति | (१९) चैत्यवन्दनभाष्य - श्री सुमतिगणिकी नौघमें है। यह 'ललितविस्तरा ' से भिन्न होगा । (२०) जंबूद्दीवसंगहणी - इसमें जम्बूद्वीपका अधिकार होगा । (२१) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - टीका- यह 'नंबूद्दीवपण्णति' की टीका है। (२२) जिणहरप डिमाथोत्त (जिनगृह प्रतिमा स्तोत्र ) - इसमें त्रिलोक में रही हुई प्रतिमाओंका निर्देश है ।
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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