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________________ और संयमकी शुद्धिके लिये उन्होने जो मार्ग पसंद किया वही उनके जीवनकी अणमोल निधि था, जो आज हमको विरासतमें मिला है। अपने शिष्योंके स्मरण चिहरूप उन्होने अपने ग्रन्थोको अन्तमें 'विरह' शब्दसे अंकित किये है। कहा जाता है कि उन्होने १४४४ ग्रन्थ निर्माण करनेकी प्रतिज्ञा की थी और उसके फलस्वरूप १४०० ग्रन्थोकी तो उन्होने रचना कर ली परतु अपने जीवनका अतिम समय जानकर चाकीके चार ग्रन्थोके बदलेमें उन्होंने 'संसारदावानल ' नामक स्तुति के ३ पद्य और ४ थे पद्यका १ चरण इन चार पद्योंको ही चार ग्रन्थ मान कर अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण की। छेदसूत्रमें गिनाया गया ' महानिशीथसूत्र' का उद्धार श्रीहरिभद्रसूरिने ही किया था। उनका जो ग्रन्थराशि आज प्राप्त है उसका निर्देश ही यहां कर देना पर्याप्त होगा।
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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