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________________ १३८ : धर्मविन्दु उसका उत्तर इस प्रकार देते हैं -~-~ शंका- शरीर ही आत्मा है, आत्मा शरीर से जुदा नहीं है । उत्तर - मृत्यु होने पर शरीर तो वैसा ही रहता हैं । यदि शरीर ही आत्मा है तो मृत्यु कैसी ? आत्मा भिन्न है, शरीर साधन हैं । आत्मा शरीरको जीर्ण होने पर जीर्ण वस्त्रको तरह छोड़ देती हैं, अतः शरीर व आत्मा भिन्न है । शंका- मृतदेह वैसा ही है पर वायु चला गया। उत्तर - वायु तो है ही, वायु न हो तो शरीर ऐसा ही प्रफुल्लित न होता । शंका- मृतदेह तेज नहीं है। उत्तर - तेजके चले जानेसे तो देहका कुथित भाव न होना चाहिये। वह होता है, अतः तेजके अभावमै मृत्यु कहना वृथा है । शरीर व आत्मा भिन्न है । पहले जैसी अवस्थावाला तेज व वायुका अभाव हो गया है इससे मृत्यु हुई है उसका उत्तर इस प्रकार शास्त्रकार देते हैंमरणे परलोकाभाव इति ॥ ६०॥ (११८) मूलार्थ मृत्यु मानने से परलोकका अभाव सिद्ध होता है। विवेचन यदि आत्मा व देह अभिन्न माना जावे तो मृत्यु · होनेसे परलोककी स्थितिको नहीं माननेका प्रसंग आता है। यदि शरीर व आत्मा एक है तो शरीर यहीं रहता है तो फिर परलोकमे कौन जाता है या क्या जाता है" ।
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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