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________________ बना लिया, लेकिन समयसूचक इन श्रमणोंने बड़ी हिम्मतसे उस चित्रमूर्तिम जनोऊकी लकीर खींचकर उसको ही बुद्धकी चित्रमूर्ति में परिवर्तित कर दिया। पुस्तक देकर वे वहासे नीकल कर चुपकीसे भागने लगे। बात प्रगट हो गई । हंस और परमहंसका पीछा करनेके लिये बौद्ध राजाकी मददसे सैनिक भेजे गये । हंस और परमहंस दूर न रहे । ये दोनों जैसे शालकुशल थे वैसे ही शस्त्रकुशल योद्धा भी थे। दोनोंमें झपाझपी हुई। निहत्थे ये श्रमण शस्त्रोंके सामने भला, कहां तक टक्कर झेल सकते थे । शस्त्रोंके जल्मोंसे चालणीसा बना हुभा हमका देह धरणी पर दुलक पड़ा। हंसका आत्महंस उस देहमेसे ऊड गया। सोच-विचार करनेका समय था नहीं। खुदको बचानेके लिये परमहंस वहीसे बड़ी तेजीसे भागकर पासके नगरमें पहुंचा और वहांके सुरपाल राजाको इस करुणघटनाका प्रसंग सुनाया। उस शरणागतवत्सल राजाने बौद्ध राजाके सैन्यका सामना किया और परमहंसको रक्षण दिया। बडी कठनाईयां झेलता हुआ परमहंस गुरुमहाराज श्रीहरिभद्रसूरिजीके पास पहुंचा, और गुरुजीके अंतिम दर्शनकी इच्छासे ही मानों परमहंस अपना छेल्ला श्वास घोटता हुआ, आनंद स्वरसे, अविनयकी क्षमा मांगता हुआ सूरिजीके पास पहुचा उसने सूरिजीको सब हाल सुनाया। थोडे समयके बाद परमहंस भी समाधिपूर्वक म्मपने भाईके पीछे चल वसा।
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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