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________________ ११ उनके पास दीक्षा ली थी। सूरिजीने स्वयं उनको व्याकरण साहित्य और दर्शन शास्त्रोंका अभ्यास करवा कर निपुण बनाये थे । Į सूरिजी सत्ताकालमें बौद्ध दर्शनकी प्रबलता थी । कितनेक देशों में बौद्ध धर्मने राजाश्रय प्राप्त कर लिया था । मंत्र और तंत्र के प्रभावसे वौद्ध दर्शनका प्रसार उस कालके जनसमुदायमें बडी शीघ्रतासे हो चुका था । जैनोके साथ वे बडी स्पर्धा कर रहे थे । युक्ति जब लाचार हो जाती थी तब वे तात्रिक प्रयोग जुटाते थे और अपनी बोलबाला उड़ाते थे । बौद्ध दर्शनके अभ्यास के दिये बौद्ध विद्यापीठों में सब प्रकार की सुविधा मिलती थी और इसलिये विद्यार्थीगण बडी संख्या में आकर वहीं विद्याध्ययन करता था । उसमें पढे हुए विद्यार्थीकी प्रतिष्ठा सर्वमान्य होती थी । सूरिजी के शिष्य हंस और परमहंस को भी इस कारण बौद्ध विद्यापीठमें जाकर बौद्ध दर्शनका ज्ञान प्राप्त करनेकी वढी आतुरता होने लगी । उन्होंने अपनी मनोगत भावना सूरिजीको व्यक्त की । निमित्तशास्त्र के ज्ञानसे उन्होंने भाविकालमे आनेवाला अपाय जानकर उनको अनुमति नहीं दी । भवितव्यता की आंधी विवेकशील आत्माको भी चकाचौध कर घीसट जाती है । वे अपनी धून में सवार होकर बौद्ध विद्यापीठमे चल पडे बौद्ध विद्यापीठमें बौद्ध भिक्षुका वेष बदल कर ही वे रह सकते थे । हंस और परमहंस क्रमशः बौद्ध दर्शनका अभ्यास करने लगे । वे विद्वान तो थे ही और दर्जनो का अभ्यास भी उन्होने किया था, इसलिये बौद्ध ग्रन्थोके मर्भ पर उन्होने अपना ध्यान जुटाया । अपनी अतुल वुद्धिप्रभासे थोडे समयमें रहस्य ग्रंथोको उन्होंने कंठस्थ कर
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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