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________________ १०२ : धर्मबिन्दु पालन करनेका उपाय बताना चाहिये । जैसे · उसे अपनेसे अधिक गुणी या समान गुणवालोके साथ या उनके बीच निवास करना चाहिये ।' अन्योको क्रिया प्रवृत्त देख कर उसकी भी इच्छा उस ओर प्रवृत्ति करनेकी होगी। " अपने जिस गुणस्थानक पर हों उसके योग्य क्रियाका पालन करना तथा उसका स्मरण करना" ऐसा उपाय बताना चाहिये । इससे आगे बढ़ सकता है। अधिकारीको पात्र, शक्ति व योग्यता देखकर उपदेश देना चाहिये। . तथा-फलमरूपणेति ॥१५॥ (७३) मूलार्थ-और फलकी प्ररूपणा करे ।। विवेचन-इस आचारके सम्यक् प्रकारसे पालन करनेका क्या सुंदर फल होता है उसका वर्णन करना चाहिये। साधारण मनुष्य फल लालसा बिना कोई कार्य नहीं करता। इसके फल इस प्रकार बताये जाय । इस संसारमें उपद्रवोका नाश होता है। हृदयमें उच्च भावकी उत्पत्ति होना, ऐश्वर्यकी वृद्धि तथा लोकप्रियता-यह प्रत्यक्ष फल है। अन्य जगह परलोकमे भी सुगतिको प्राप्त होकर उत्तम स्थान पर जन्म ग्रहण होता है। देवऋद्धि प्राप्त होती है तथा मानवयोनिमे उत्तम कुलमे जन्म लेता है तथा क्रमशः परंपरासे निर्वाणको प्राप्त होता है । इस प्रकारके फलको बतानेसे बाल जीव धर्मकी ओर अग्रसर होता है विशेषत: देवद्धिवर्णनमिति ॥१६।। (७४) मूलार्थ-देवऋद्धिका वर्णन करे। विवेचन-देवताओंकी ऋद्धि जिसमें मुख्यतः वैमानिक देवोंकी
SR No.010660
Book TitleDharmbindu
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorHirachand Jain
PublisherHindi Jain Sahitya Pracharak Mandal
Publication Year1951
Total Pages505
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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