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________________ स्मरणकरनेसे (क्षभितभीपणनक्रचक्रपाठीनपीठभयदोल्बणवाडवानी) भीपण नक (मगर,) चक्र (घडियाल,) पाठीन, और पीठोंसे तथा भयंकर विकराल बडवामि करके क्षुभित (अम्भोनिधौ) समुद्र में (रगत्तरगशिखरस्थितयानपात्राः) उछलती हुई तरंगोंके शिखरोंपर जिनके जहाज ठहरे हुए है, ऐसे पुरुष (त्रासं विहाय) आकस्मिक भयके विना (व्रजन्ति) चले जाते हैं, अर्थान् पार हो जाते है । । भावार्थ:-आपका नाम स्मरण करनेसे भयानक समुद्रमें पड़े हुए जहाजवाले भी पार हो जाते है ॥ ४४ ॥ उद्भूतभीषणजलोदरभारभुग्नाः शोच्यां दशामुपगताश्च्युतजीविताशाः । त्वत्पादपङ्कजरजोऽमृतदिग्धदेहा मां भवन्ति मकरध्वजतुल्यरूपाः॥४५॥ भीषन जलोदर भारसों, कटि वंक जिनकी ह गई। अति शोचनीय दशा भई, आशा जियनकी तज दई । ते मनुज तुव पद-कंज-रज,-रूपी सुधा-अभिरामसे। निज तन परसि होवहिं अनूप, सुरूपवारे काम से ॥४५॥ - - - अन्वयार्थी हे जिनराज, ( उद्भूतभीषणजलोदरभार१-२ एक जातिकी मछलियाँ । ३ "नासस्त्वाकस्मिकभयं" इति हैमः ३ "सद्यो" भी पाठ है। ४ एक रोगविशेष होता है, जिससे पेट बड़ा हो जाता है।
SR No.010657
Book TitleAdinath Stotra arthat Bhaktamar Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1912
Total Pages69
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Literature
File Size3 MB
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