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________________ (तान ) उन्हें ( यथेष्टम्) खेच्छानुसार (संचरतः) सब जगह विचरण करनेसे (कः) कौन पुरुष ( निवारयति) निवारण कर सकता है-रोक सकता है ? अर्थात् कोई भी नहीं। । ___ भावार्थ:--जिन उत्तम गुणोने आपका आश्रय लिया है, वे गुण जहा तहां इच्छापूर्वक गमन करते हैं, उन्हें कोई रोक नहीं सकता है। क्योंकि वे आप जैसे तीनलोकके नाथके आश्रित है। और इसी कारण अर्थात् उन गुणोंके सर्वत्र विचरनेसे तीनलोक उन्हीसे व्याप्त हो रहा है ॥ १४ ॥ चित्रं किमत्र यदि ते त्रिदशाङ्गनाभि नीतं मनागपि मनो न विकारमार्गम् । कल्पान्तकालमरुता चलिताचलेन किंमन्दरादिशिखरं चलितं कदाचित्॥१५ अचरज कहो इहिमें कहा, तुव अचल मनको मदछकी। जो सुधर सुरवनिता न तनिक हु, सुपथसोंच्युत कर सकीं ॥ जिहिने चलाये अचल ऐसो, प्रलयको मारुत महा। गिरिराज मंदरैशिखरहूकहँ, सो चलाय सकै कहा?॥१५॥ अन्वयार्थों-हे प्रभो, (यदि ) यदि (त्रिदशाङ्गनाभिः) देवांगनाओंकरके (ते) तुम्हारा (मनः) मन (मनाक् अपि), किंचित् भी (विकारमार्गम् ) विकारमार्गको (न नीतं) नहीं प्राप्त हुआ, तो ( अत्र ) इसमें (किम् ) क्या (चित्र) आश्चर्य है ? १ पर्वत। २ पवन । ३ सुमेरु पर्वतके शिखरको। ।
SR No.010657
Book TitleAdinath Stotra arthat Bhaktamar Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1912
Total Pages69
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Literature
File Size3 MB
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