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________________ यह कथा श्रीमूलसंघान्नायी भट्टारक श्रीजगद्भूपणके शिष्य भधारक - श्रीविश्वभूपणकृत संस्कृतटीकाके चरित्रके आधारसे लिखी गई है। इससे सिद्ध होता है कि, मानतुंगसूरि धनंजय तथा महाराज भोजके समकालीन थे और उज्जयिनीके राजा भोजका समय ईसाकी ग्यारहवीं शताब्दिका पूर्वार्ध निश्चित हो चुका है । इस हिसावसे मानतुंगसूरिका समय ईखी सन् १००० के ऊपर सिद्ध होता है । परन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से अभीतक यह समय विश्वासके योग्य नहीं है । क्योंकि एक तो मानतुंगके विपयमें दिगम्बरसम्प्रदायके ग्रन्थों में ही दो तीन प्रकार की कथाएँ प्रचलित हैं तथा एक कथा श्वेताम्वरसम्प्रदायके ग्रन्थों में भी मिलती है और ये सव ही कथाएँ एक दूसरेसे नहीं मिलती हैं-जुदे २ विद्वानोंके साथ मानतुंगकी समकालीनता स्थिर करती हैं । दूसरे प्रसिद्ध इतिहासज्ञ पं. गौरीशंकर हीराचन्द ओझाने अपने 'सिरोहीका इतिहास' नामक ग्रन्थमें लिखा है कि, भक्तामरस्तोत्रके की मानतुंगसूरि महाराज श्रीहर्षके समयमें हुए है और श्रीहर्षका राज्याभिषेक ईखीसन् ६०७ में (वि० सं० ६६४) हुआ हैं । अर्थात् ओझाजीके मतसे भोजसे ४०० वर्ष पहिले मानतुंगका समय निश्चित होता है। तीसरे भक्तामरकी सस्कृत टीकाके कर्ता श्रीप्रभाचन्द्रसूरि लिखते हैं कि-," मानतुंगसूरि पहिले बौद्ध धर्मके उपासक थे पीछे जैनधर्ममें उन्हें विश्वास हो गया था। जिनदी. क्षा ले चुकनेपर उन्होंने अपने गुरुकी आज्ञासे यह आदिनाथस्तोत्र बनाया था। अर्थात् प्रभाचंद्रके मतसे राजा भोजके बंधनोंसे मुक्त होनेके लिये इस स्तोत्रकी रचना नहीं हुई थी। इस तरह मानतुंगसूरिका इतिहास और समय वहुत वडे अधकारमें छुपा हुआ है और विना बडे भारी परिश्रमके उसका पता लगना कठिन है, तो भी हम भट्टारक विश्वभूषणकी उक्त कथाको इसलिये प्रकाशित कर देते हैं कि, वह वालकोंके लिये मनोरंजक और प्राभाविक होगी। इसके सिवाय अन्य कथाओंकी अपेक्षा इसका प्रचार भी अधिक है। १ श्वेताम्बरसम्प्रदायमें भी भक्तामरस्तोत्रका प्रचार अधिकतासे है। परन्तु उसमें इसके ४८ के स्थानमें ४० ही श्लोक माने जाते हैं । मानतुगसूरिको श्वेताम्बरी भाई श्वेताम्बराचार्य मानते हैं । सुना है श्वेताम्वरसम्प्रदायका कोई ग्रन्थ भी मानतुंगाचार्यका बनाया हुआ है । ३ ये सोनागिरकी गद्दीके अधिकारी थे ।
SR No.010657
Book TitleAdinath Stotra arthat Bhaktamar Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1912
Total Pages69
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Literature
File Size3 MB
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