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________________ (७) थी और जिसकी देहले इतनी दुर्गेव भातीथी कि कोई उसके पास जाना नहीं चाहता था और इसी कारण वह बहुत दुखी थी जै धर्मका उपदेश देकर श्रावक के व्रत धारण कराये थे, जिसकी कथा सुकमाल बारिशादिक शास्त्रों में मौजूद है। यही बांडालीका और दो जन्म लनेके पश्चात् तीसरे जन्म में सुकुबालजी हुआथा । पूर्णभद्र और मानमद नाम के दो वैश्य माइयोंने एक चांडाल को श्रावक के ग्रहण कराये थे और उन ननों के कारण वह चांडाल मरकर मोलहवें स्वर्ग में बड़ी ऋद्धिका धारिक देवहुआ था, जिसकी कथा पुण्याक्षत्र कथाकोश में लिखी है। दरिवंशपुराण में लिखा है कि, गंधमादन पर्वतपर एक परवर्तक नाम के भीलको धोधर आदिक दो चारण मुनियों ने श्रावक के व्रतदिये । इसीप्रकार म्लेच्छोके जैनधर्म धारण करने के सम्बन्ध मेमी बहुत सी कथाएँ विद्यमान है, वल्कि मेन चक्रवर्ती राजाओंने तो म्लेच्छों की कन्याओं से विवाह तक किया है। · श्रीनेमिनाथ के चचा वसुदेवजीने मी एक मजेच्लराजाकी पुत्री से जिसका नाम जरा था, विवाह किया था, और उसके जरत्कुमार उत्पन्न हुआ था, जो जैनधर्मका बड़ा भारी श्रद्धानी था और जिसने अन्त में जैनधर्म की मुनिदीक्षा धारण कीथी । यह कथामी हरिवंशपुराण में लिखी है । औरहसी पुराण में जहाँपर श्रीमहावीरस्वामी के समवसरणका वर्णन है, वहां पर यहभी लिखा है कि समवसरण में जब श्रीमहावीरस्वामीने मुनिधर्म और श्रावकधर्मका उपदेश दिया तो उसको सुनकर बहुत से ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्व लोग मुनि होगये और चारों वर्णके श्रीपुरुषोंने श्रावक के बारह व्रत धारण किये । इतना ही क्यों? उनकी पवित्र वाणीका यहांतक प्रभाव पड़ा कि कुछ
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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