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________________ मत्त त्रियाके ज्यौं कटाक्ष त्यौं, चपल विषयसुख सारे । तातै इनकी प्राप्ति नास्तिमें, हर्ष शोक क्या प्यारे ॥४॥ देह जननि है दुःख मरणकी, भयो योग यदि यासे। तो फिर शोक न बुधजन कीजे, मरते वा दुख आते ॥ आत्मस्वरूप विचारो तातै, नित तज आकुलताई। संभव होय न कबहुँ जासन, देहजन्म दुखदाई ॥५॥ दुर्निवार निजकर्महेतुवश, इष्ट-स्वजन मर जावै। जो तिसपर बहु शोक करे नर, सो उन्मत्त कहावै ।। जोतै शोक किये क्या सिद्धी, पर इतना फल हो है। नाश होहिं तिस मूढ मनुजके, धर्मार्थादिक जो है ॥६॥ मूर्यबिम्ब ज्यौ उदय होय फिर, काल पाय छिप जावै। सर्व देहधारिनको तनु त्यौ, उपजै अरु नश जावै॥ रिन्द्रजालोपमा, दुर्वाताहतवारिवाहसदृशा. कान्तार्थपुत्रादयः । सौख्य वैषयिक सदैव तरल मत्ताङ्गनापाङ्गवत् , तस्मादेतदुपप्लवाप्तिविषये शोकेन किं कि मुदा ॥ ४ ॥ दुखे वा समुपस्थितेऽथ मरणे शोको न कार्यों बुधैः, सम्बन्धो यदि विग्रहेण यदय सभूतिदात्री तयो । तस्मात्तत्परिचिन्तनीयमनिश ससारदु.खप्रदो, येनाऽस्य प्रभव पुर. पुनरपि प्रायो न सभाव्यते ॥ ५॥ दुर्वारार्जितकर्मकारणवशादिष्टे प्रनष्टे नरे, यन्छोक कुरुते तदत्र नितरामुन्मत्तलीलायितम् । यस्मात्तत्र कृतेन सिद्धयति किमप्येतत्पर जायते, नश्यन्त्येव नरस्य मूढमनसो धर्मार्थकामादयः ॥६॥ उदेति पाताय रविर्यथा तथा, शरीरमेतन्ननु सर्वदेहि १ उन्मत्त स्त्री। २ इसके स्थानमें "शोक किये कछु सिद्धी नाही" ऐसा पाठ भी पढ़ सकते हैं । ३ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चार पुरुषार्थ ।
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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