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________________ २२ उक्त्वा जिनेंद्रपादाब्जोपरि क्षित्वाशु पंकजम्। गतो, मुग्धजनानां च भवेत्सत्कर्म शर्मदम् ॥ १६ ॥” करकुडुकथा अर्थात् - जब सुगुप्तिमुनिके द्वारा ग्वालेको यह मालूम होगया कि, सबसे उत्कृष्ट जिनदेव ही है तब उस ग्वालेने, श्रीजिनेद्रदेवके सन्मुख खड़े होकर और यह कहकर कि 'हे सर्वोत्कृष्ट मेरे इस कमलको स्वीकार 'क' वह कमल श्रीजिनदेव के चरणोपर चढा दिया और इसके पश्चात वह ग्वाला मदिरसे चला गया । ग्रन्थकार कहते है कि, भला काम ( सत्कर्म) मूर्ख मनुष्योको भी सुखका देनेवाला होता है । इसीप्रकार शूद्रोंके पूजन सम्बधमे और भी बहुतसी कथाएँ हैं । arraat छोडकर जब वर्तमान समयकी ओर देखा जाता है, तब भी यही मालूम होता है कि, आज कल भी बहुत से स्थानोपर शलोग पूजन करते है । जो जैनी शूद्र है वा शूद्रोका कर्म करते हुए जिनको पीढ़ियाँ बीत गईं, वे तो पूजन करते ही है, परन्तु बहुतसे ऐसे भी शुद्ध है जो प्रगटपने वा व्यवहारमे जैनी न होते वा न कहलाते हुए भी, किसी प्रतिमा वा तीर्थस्थानके अनिशय ( चमत्कार ) पर मोहित होनेके कारण, उन स्थानोपर बराबर पूजन करते है - चांदनपुर ( महावीरजी ), केस - रियानाथ आदिक अतिशय क्षेत्रो और श्री सम्मेदशिखर, गिरनार आदि तीर्थस्थानोपर ऐसे शूद्रपूजकोकी कमी नहीं है । ऐसे स्थानोपर नीच ऊच सभी जातियों पूजनको आती और पूजन करती हुई देखी जाती है । जिन लोगोको चैतके मेलेपर चांदनपुर जानेका सुअवसर प्राप्त हुआ है, उन्होने प्रत्यक्ष देखा होगा अथवा जिनको ऐसा अवसर नहीं मिला वे जाकर देख सकते है कि चैत्रशुक्ला चतुर्दशीसे लेकर तीन चार दिनतक कैसी कैसी नीच जातियोके मनुष्य और कितने शूद्र, अपनी अपनी भाषाओमे अनेक प्रकारकी जय बोलते, आनदमे उछलते और कूदते, मदिरके श्रीमडपमे घुस जाते हैं और वहापर अपने घरसे लाये हुए द्रव्यको चढ़ाकर तथा प्रदक्षिणा देकर मंदिरसे बाहर निकलते है । बल्कि वहां तो रथोत्सव के समय यहांतक होता है कि मदिरका व्यासमाली,
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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