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________________ "तत्र नित्यमहो नाम शश्वजिनगृहं प्रति । म्वगृहानीयमानार्चा गन्धपुष्पाक्षतादिका ॥" -~-अ ३८, ० ०७ । अर्थात-प्रतिदिन अपने घरसे जिनमदिरको गध, पुष्प, अक्षतादिक पूजनकी सामग्री ले जाकर जो जिनेन्द्रदेवकी पूजा करना है उसको नित्य• पूजन कहते है । धर्मसंग्रहश्रावकाचारमे भी नित्यपूजनका यही म्वरूप वर्णित है। यथा - "जलाथैधौतपूताङ्गैगृहानीतर्जिनालयम् । यदय॑न्ते जिना युक्त्या नित्यपूजाऽभ्यधायि सा ॥" -९-२७। प्रतिदिन क्या स्त्री, क्या पुरुष, क्या बालक, क्या बालिका-सभी गृहस्थ जन अपने अपने घरोसे जो बादाम, छुहारा, लोग, इलायची या अक्षत (चावल) आदिक लेकर जिनमदिरको जाते है और वहां उस द्रव्यको, जिनेन्द्रदवादिकी स्तुतिपूर्वक नामादि उच्चारण करके, जिनप्रतिमाके सन्मुख चढ़ाते है, वह सब नित्यपूजन कहलाता है। नित्यपूजनके लिये यह कोई नियम नही है कि वह अष्टद्रव्यसे ही किया जावे या कोई खास द्रव्यसे या किसी खास सख्यातक पूजाएं की जावे, बल्कि यह सब अपनी श्रद्धा, शक्ति और रुचिपर निर्भर है-कोई एक द्रव्यसे पूजन करता है, कोई दोसे और कोई आठोसे, कोई थोडा पूजन करता और थोडा समय लगाता है, कोई अधिक पूजन करता और • अधिक समय लगाता है, एक समय जो एक द्रव्यस पूजन करता है वा थोडा पूजन करता है दूसरे समय वही अष्टद्रव्यसे पूजन करने लगता है और बहुतसा समय लगाकर अधिक पूजन करना है-इसी प्रकार यह भी कोई नियम नहीं है कि मदिरजीके उपकरणोमे और मदिरजीम रक्व हुए वस्त्रोको पहिनकर ही नित्यपूजन किया जावे । हम अपने घरसे शुद्ध वस्त्र पहिनकर और शुद्ध वर्तनोमे सामग्री बनाकर मदिरजीम ला सकतेहै और खुशीके साथ पूजन कर सकते है । जो लोग ऐसा करनेके लिये जि. पू. २
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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