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________________ चाहे बीसा हो या दस्मा और चाहे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य हो या शूद्र, सबको पूजन करना चाहिये । सभी गृहस्थ जैनी है, सभी श्रावक हैं, अत. सभी पूजनके अधिकारी है। श्रीतीर्थकर भगवानके अर्थात् जिस अरहंत परमात्माकी मूर्ति बनाकर हम पूजते है उसके समवसरणमे भी, क्या स्त्री, क्या पुरुष, क्या व्रती, क्या अवती, क्या ऊच और क्या नीच, सभी प्रकारके मनुष्य जाकर साक्षात् भगवानका पूजन करते है । और मनुष्य ही नहीं, समवसरणमे पचेन्द्रिय नियंच तक भी जाते है-समवसरणकी बारह सभाओमे उनकी भी एक सभा होती है-वे भी अपनी शक्ति के अनुसार जिनदेवका पूजन करते हैं। पूजनफलप्राप्तिके विषयमे एक मडककी कथा सर्वत्र जैनशास्त्रोमे प्रसिद्ध है । पुण्यानवकथाकोश, महावीरपुराण, धर्मसंग्रहश्रावकाचार आदि अनेक ग्रथोमे यह कथा विस्तारके साथ लिखी है और बहुतसे प्रथोमे इसका निम्नलिखित प्रकारमै उल्लेख मात्र किया है । यथा - रत्नकरण्डश्रावकाचारमे, "अहच्चरणसपर्या महानुभावं महात्मनामवदत् । भेकः प्रमोदमत्तः कुसुमनकेन राजगृहे ॥" १२० ॥ मागरधर्मामृतम, “यथाशक्ति यजेताहदेवं नित्यमहादिभिः । संकल्पतोऽर्पितं यष्टा भेकवत्स्वमहीयते ॥"२-२४॥ कथाका साराश यह है कि जिस समय राजगृह नगरमे विपुलाचल पर्वतपर हमारे अन्तिम तीर्थंकर श्रीमहावीर स्वामीका समवसरण आया और उसके सुसमाचारसे हर्षोल्लसित होकर महाराजा श्रेणिक आनदभेरी बजवाने हुए परिजन और पुरजन सहित श्रीवीरजिनेन्द्र की पूजा और वन्दनाको चले, उससमय एक मेडक भी, जो नागदत्त श्रेष्ठीकी बावड़ीमें रहता था और जिसको अपनी पूर्वजन्मकी स्त्री भवदत्ताको देखकर जा
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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