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________________ अमितगतिश्रावकाचारमे श्रीअमितगति आचार्यने भी ऐसा ही वर्णन किया है । यथा - "दानं पूजा जिनः शीलमुपवासश्चतुर्विधः । श्रावकाणां मतो धर्मः संसारारण्यपावकः॥" -अ० ९, श्० १। श्रीपद्मनन्दि आचार्य पद्मनन्दिपंचविशतिकामे श्रावकधर्मका वर्णन करते हुए लिखते है कि "देवपूजा गुरूपास्तिः स्वाध्यायः संयमस्तपः। दानं चेति गृहस्थानां षट्कर्माणि दिने दिने ॥" --अ० ६, 401 अर्थात्-देवपूजा, गुस्सेवा, म्वाध्याय, सयम, तप और दान, ये पदकर्म गृहस्थोको प्रतिदिन करने योग्य है-भावार्थ, धार्मिकदृष्टिसे गृहस्थोके ये सर्वसाधारण नित्य कर्म है । श्री सोमदेवसूरि भी यशस्तिलकमे वणित उपासकाध्ययनम इन्हीं पट्कौका, प्राय इन्ही (उपर्युल्लिखित ) शब्दोमे गृहस्थोको उपदेश देते है। यथा -- "देवसेवा गुरूपास्तिः स्वाध्यायः संयमस्तपः । दानं चेति गृहस्थानां पदकर्माणि दिन दिने ॥" -कप ४६, ० ७॥ गृहस्थोके लिये पूजनकी अत्यन्त आवश्यताको प्रगट करते हुए श्रीपद्मनन्दि आचार्य फिर लिखते है कि "ये जिनेन्द्रं न पश्यन्ति पूजयन्ति स्तुवन्ति न । निष्फलं जीवितं तेषां तेषां धिक् च गृहाश्रमम् ॥" -० ६, शा. १५ । अर्थात्-जो जिनेन्द्रका दर्शन, पूजन और स्तवन नहीं करते हैं, उनका जीवन निष्फल है और उनके गृहस्थाश्रमको धिक्कार है । इसी आवश्यक
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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