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________________ जो संयोग वियोग सहित वह, जन्ममृत्युयुत मानो। संपत विपदासे सुखदुखसे, निश्चय व्याप्त सुजानो ॥ बारबार गति जाति अवस्था;-धर बहुविध जगमाहीं। जीव नचै, नहिं हर्षशोक तब, कबहुँ सन्त मनमाही ॥ ५२ ॥ अपने हितकी चिन्ता निश दिन, लोक करै मनमाहीं। पर भावी अनुसार होय सब, यामें संशय नाहीं॥ तातें फैले तीत्र मोह वश, बहुविकल्प, तिन त्यागी । रागद्वेष विषरहित, सदा सुख, में तिष्ठें बड़भागी ।। ५३ ॥ भविजन! यह घर नारी सुत अरु, जीवन आदिक जानो। पर्वनप्रताड़ित ध्वजावस्त्रसम, चंचल सकल बखानो। छोड़ धनादिक मित्रनमें यह, मोह महा दुखदाई । 'जुगल' धर्ममें प्रीति करो अब, अधिक कहै क्या भाई॥५४॥। तन्मृत्युना, सम्पन्चेद्विपदा सुख यदि तदा दुःखेन भाव्य ध्रुवम् । ससारे त्र मुहुर्मुहुर्बहुविधावस्थान्तरप्रोलस-द्वेषान्यत्वनटीकृताङ्गिनि सत शोको न हर्प क्वचित् ॥ ५२ ॥ लोकाश्चेतसि चिन्तयन्त्यनुदिन कल्याणमेवात्मनः, कुर्यात्सा भवितव्यताऽऽगतवती तत्तत्र यद्रोन्यते । मोहोलासवशादति प्रसरतो हित्वा विकल्पान् बहून् , रागद्वेषविषोज्झितै. रिति सदा सद्भि. सुख स्थीयताम् ॥५३॥ लोका गृहप्रियतमासुतजीवितादि,-वाताहतध्वजपटोग्रचल समस्तम् । व्यामोहमत्र परिहृत्यधनादिमित्रे धर्मे मति कुरुत कि बहुभिर्वचोभि ॥५४ ॥ पुत्रादिशोकशिखिशान्तकरी यतीन्द्र, श्रीपद्मनन्दिवदनाम्बुधरप्रसूतिः । सद्बो १ घिरा हुआ। २ जिस प्रकार झडेका कपडा तेज हवासे चलायमान होता है, उसी प्रकार यह सब (स्त्रीपुत्र धन जीवनादिक) वचल है, स्थिर रहनेवाले नहीं।
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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